विषय सूची
महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
दुर्योधन और अश्वत्थामा की भेंट
ऐसी घनघोर उदास रात में अश्वत्थामा अपने मित्र सुयोधन से मिलने के लिए पहुँचे। पहले तो सिपाहियों ने ललकारा पर जब मशाल के उजाले में गुरु महाराज के बेटे को देखा तो आदर से अलग हट गये। अश्वत्थामा दुर्योधन के पास पहुँचे। उस समय वह आधी बेहोशी में आंखे बंद किये धीरे-धीरे कराह रहा था। अश्वत्थामा ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए धीरे-से उसके कान में कहा- “मित्र, मैं अश्वत्थामा तुम्हारे पास आया हूँ। तुम्हारे मन में अगर कोई अभिलाषा बाकी रह गयी हो तो बताओ, मैं उसे अवश्य पूरा करूंगा।” दुर्योधन ने आंखे खोलीं, अपने मित्र को देखा और कहा- “पाण्डवों को मार डालो। बचने न पायें।” अश्वत्थामा ने कहा- “मैं अभी जाकर तुम्हारी कामना पूरी करने के लिए वह काम करता हूँ जो वीरों को कभी नहीं करना चाहिए। मैं सोते में उनके सिर काटकर अभी तुम्हारे पास लाता हूँ।” अपने परम मित्र को संतोष देने के लिए अश्वत्थामा कायरों जैसा काम करने के लिए भी सहमत हो गये। जब कोई दुर्घटना हो जाती है तो हर आदमी अपने-अपने ढंग से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। अपने पिता की छल भरी हत्या के कारण अश्वत्थामा मन से कभी पाण्डवों को क्षमा नहीं कर पाये थे। दुर्योधन की सहानुभूति की आड़ में उनके मन में भी यह आया कि अपना बदला लेने के लिए मैं भी क्यों न छल करूं। वे तुरन्त उठकर चल दिये। आधी रात बीत चुकी थी। पाण्डव सेना जीत की खुशी में आज उतनी चौकस नहीं थी जितनी रोज रहा करती थी। सिपाही अधिकतर किसी नशे में धुत्त सोये हुए थे या फिर ऊंघ रहे थे। अश्वत्थामा चोरों की तरह चुपचाप उस जगह गये जहाँ बड़े-बड़े लोगों के डेरे पड़े थे। पाण्डवों को डेरा पहचानने के लिए अश्वत्थामा ने एक तम्बू के आगे भाला लेकर घूमते सिपाही को जाकर दबोच लिया। उसके कान में कहा, “बड़े सरकारों के तम्बू किधर हैं, बतलाओ।” सिपाही ने घबराहट में हाथ बढ़ाकर दिखलाया। “वह” कहते ही उसका गला घुट गया। अश्वत्थामा इस समय उसे शोर मचाने के लिए जीवित नहीं छोड़ सकते थे। तलवार लेकर वे उन तम्बुओं की ओर बढ़े। चोर की तरह छिपकर प्रवेश कर गये। एक-एक कर पांचों तम्बुओं में उन्होंने पांचों पाण्डवों के सिर काट डाले और चले आये। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज