महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
बाप बेटे की लड़ाई
घोड़ा जब वहाँ से चला तो अर्जुन भगवान् से यही मना रहे थे कि भगवान करे यह घोड़ा मणिपुर की ओर निकल जाय तो अपनी परमप्रिय रानी चित्रांगदा से मिलने का अवसर भी पा जाएं। अर्जुन को उसकी याद आने लगी। वर्षो पहले चित्रांगदा से उनकी भेंट हुई थी। बड़ा प्रेम-भाव बढ़ा था, ब्याह किया, और पति-पत्नी ने हंसी-खुशी के दिन एक साथ बिताये। फिर बिदा होने की घड़ी आयी, चित्रांगदा के सुन्दर मुख की उदासी अर्जुन को याद आ रही थी। अर्जुन बार-बार यही मनाने लगे कि राम जी घोड़ा उधर ही चले। संयोग से घोड़ा मणिपुर की ओर ही बढ़ गया। अर्जुन ने खुशी के मारे पहले से ही चित्रांगदा के पास यह सन्देश भिजवा दिया कि वे आ रहे हैं। घोड़े के स्वागत की तैयारी करो। संदेसियों ने लौटकर अर्जुन को यह समाचार दिया कि रानी चित्रांगदा इस समाचार से बड़ी प्रसन्न हैं और इस समय मणिपुर का राजा भी सौभाग्य से और कोई नहीं बल्कि स्वयं महाबली अर्जुन और चित्रांगदा का बेटा बभ्रुवाहन ही है। अर्जुन यह समाचार सुनकर बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने कुछ दिन अपने बेटे की राजधानी में टिककर विश्राम करने की योजना भी अपने मन में बना ली। उधर हुआ यह कि बभ्रुवाहन की सौतेली मां उलूपी अकस्मात महल में पहुँच गयी। नाग महिला उलूपी ने अपने सौतेले बेटे से कहा बभ्रुवाहन तुम महाबली अर्जुन के बेटे हो और रानी चित्रांगदा के होते हुए भी तुम मन से मेरे ही बेटे हो, मैंने तुम्हें बड़े-बड़े आचार्यों से धनुर्विद्या सिखलाई है। आज उन सबकी परीक्षा का अवसर आया है।” बभ्रुवाहन बोला- “मां, तुम मेरे लिए क्या आज्ञा करती हो?” उलूपी बोली- “मेरी यह इच्छा है कि पाण्डवों का घोड़ा जब तुम्हारे राज्य में आये तो तुम अवश्य ही उसको पकड़ लो।” रानी चित्रांगदा घबराकर बोली- “बहन, यह तुम क्या शिक्षा दे रही हो, क्या बाप-बेटे में लड़ाई करवाओगी।” उलूपी तड़प कर बोली- “कैसा बाप री। इतने वर्षों से कभी झूठ भी न पूछा कि तुम से मेरा कोई बाल-बच्चा भी हुआ है या नहीं। हमारे पति ने हमारे साथ क्या सम्बन्ध रखा? मैं तो कहती हूँ कि वे हम दोनों को ठग कर चले गये और फिर मन से एकदम उतार दिया। हम भले ही उन्हें अपने मन में याद करती रहें, पर उन्हें हमारी कभी सुधि भी आती होगी? तू घोड़ा जरूर रोकना बेटा! मैं एक बार महाबली अर्जुन को भी यह बतला दूंगी कि मेरा बेटा उनसे भी बड़ा वीर है।” |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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