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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
अश्वत्थामा का प्रचण्ड युद्ध
दूसरे दिन युद्ध-क्षेत्र में शुरू से ही बड़ी तनातनी बढ़ने लगी। अश्वत्थामा ने गरज कर सबको अपनी प्रतिज्ञा सुनाई उसने ललकार कर कहा- “झूठ बोलकर मेरे पिता से हथियार रखवाने वाला वह पाखण्डी धर्मराज युधिष्ठिर कहाँ है। मैं आज उसे दण्ड दिये बिना कदापि नहीं छोड़ंगा। कहाँ है यह नीच धृष्टद्युम्न जिसने कल मेरे निहत्थे पिता का सिर काटने की कायरता दिखलाई थी। आज मैं एक-एक से गिन-गिनकर बदला ले लूंगा।” युद्ध-भूमि में ऐसी ललकारों का जवाब प्रबल ललकारों से ही दिया जाता है, किन्तु श्रीकृष्ण के आदेश से उस समय कोई कुछ न बोला। अर्जुन आज यों भी बहुत दुखी थे। लड़ाई में उनका जी नहीं लग रहा था। श्रीकृष्ण ने कहा- “हे अर्जुन! मोह में मत पड़ो, अपना कर्म करो। तुम्हारी उदासी देखकर पाण्डव सेना के हौसले पस्त हो जायेंगे। यह ठीक न होगा और मेरी कल की बात पर भी ध्यान रखना। मुझे लगता है कि अश्वत्थामा नारायणास्त्र का प्रयोग अवश्य करेंगे।” अर्जुन बोला- “हे सखा मैं बरसों पहले ही यह प्रतिज्ञा कर चुका हूँ कि ब्राह्मण, गाय और नारायणास्त्र के सामने अपना गाण्डीव कभी धारण नहीं करूंगा।” यह सुनकर भीमसेन तड़प उठे। उन्होंने कहा- “तू भले मत कर, लेकिन मैं युद्ध की भूमि में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक की परवाह नहीं कर सकता। किसी देवता के नाम पर किसी हथियार का नाम रख देने से मैं धर्मभीरु होकर हथियार न चलाऊं, यह असम्भव बात है। यह कह कर युद्ध-भूमि में आगे बढ़ते हुए अश्वत्थामा के रथ पर उन्होंने तीखे बाणों की झड़ी लगा दी। दोनों पक्षों के बीच का मैदान भीम के तीरों से भर गया। वे एक साथ कई-कई बाण धनुष पर चढ़ा कर पूरी शक्ति के साथ छोड़ रहे थे। बेंत के बने लोहे के फलक वाले विष-बुझे तीखे बाणों की सनसनाहट से सारा युद्ध क्षेत्र भर उठा। “ठहर तो दुष्ट” कह कर अश्वत्थामा ने धनुष पर अपना नारायणास्त्र चढ़ाया। नारायणास्त्र इस समय का कोई ऐसा भयंकर अस्त्र होगा कि जिसकी हर नोंक से आग के नाग सर सर करके निकलते होंगे। तीर के छूटने से वायु में कड़कड़ाहट भरती थी और लोहे के हथियारों को यह चुम्बक की तरह छूकर उन्हें भड़का देता होगा। इसलिए जैसे ही नारायणास्त्र छूटा वैसे ही श्रीकृष्ण के आदेश से सबने अपने-अपने हथियार अलग रख दिए और रथों से कूद कर उतर आए। केवल भीम ही ऐसे थे जिन्होंने अभी तक अपने हथियार नहीं रखे थे। श्रीकृष्ण ने जब यह देखा तो अर्जुन से कहा- “तुरंत वरुणास्त्र छोड़कर हवा में नमी पैदा करो नहीं तो यह नारायणास्त्र हम सब को जलाकर भस्म कर देगा।” |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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