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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
शल्य और युधिष्ठिर का युद्ध
उधर दुर्योधन भी दो बार गुरु के द्वारा टोके जाने के कारण उत्तेजित हो गया था। दोनों में अब नये सिरे से लड़ाई आरम्भ हुई तो कुछ ही मिनटों में वे एकदम प्रलयंकर बन गये। ऐसा लगता था कि दो पहाड़ उछल-उछल कर एक-दूसरे से टकरा रहे हैं। एक बार जैसे ही दुर्योधन गदा मारने के लिए उछला वैसे ही भीम ने ऐसा निशाना साध कर अपनी गदा फेंकी कि उसकी बाई जांघ की हड्डी टूट गयी और वह लड़खड़ा कर धरती पर आ गिरा। कौरव पक्ष के लोग हाहाकार कर उठे। श्री बलराम भीम के ऊपर बिगड़े। उन्होंने कहा- “तूने बेईमानी की है भीम, कमर के नीचे प्रहार करना शास्त्र के विरुद्ध है। तूने दुर्योधन की जांघ पर गदा क्यों मारी?” भीम बोला- “इसकी जांघ पर अपनी गदा बैठाने की प्रतिज्ञा तो मैंने भरी सभा में की थी। द्रौपदी को अपनी जांघ पर बैठाने की सदाचार विरुद्ध बात जब इस दुष्ट के मुंह से निकली थी तभी मुझे भी वह शास्त्र विरुद्ध प्रतिज्ञा करनी पड़ी थी। इसलिए दोष दुर्योधन का है मेरा नहीं। अपनी बात का टका-सा जवाब पाकर शराबी बलराम जी का नशा तड़क गया। वे बोले- “तू अपने गुरु से जबान लड़ाता है? ठहर तो सही मैं अभी तुझे इसी युद्ध भूमि में मारकाट कर बिछाये देता हूँ।” श्रीकृष्ण ने तुरन्त ही आगे बढ़कर अपने बड़े भाई को दोनों हाथों से दबोच लिया और समझा कर कहा- “भैया आपकी बात बिल्कुल ठीक है कि भीमसेन ने शास्त्र के विरुद्ध काम किया, मगर भीम की प्रतिज्ञा और उस प्रतिज्ञा के कारणों को ध्यान में रखते हुए हम यह कभी नहीं कह सकते कि भीम ने अन्याय किया है। अब तो जो होना था सो हो चुका। कौरव साम्राज्य के सपने देखने वाला यह दुर्योधन अपने ही लहू की कीचड़ में लथपथ होकर बेसुध पड़ा है। पाण्डव भाई अपना आधा जीवन संकटों से जूझ कर बिताने के बाद आज अपने लिए न्याय पा सके हैं। हमें उनके साथ सहानुभूति होनी चाहिए। कुन्ती बुआ के बेटों के प्रति आपका प्रेम भी होना चाहिए।” बहुत कहने-सुनने से श्री बलराम का क्रोध शान्त हो गया और वे लोग छावनी में वापस पहुँच गये। जहाँ दुर्योधन घायल पड़ा हुआ था वहाँ पाण्डव सरकार की ओर से पहरा लगा दिया गया जिससे कि वह शान्तिपूर्वक दम तोड़ सके। जीते जी उसे चील, कौवे, गीदड़ और पशु न खा सकें। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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