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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
शल्य और युधिष्ठिर का युद्ध
श्रीकृष्ण की सलाह के अनुसार ही थोड़ी देर विश्राम करके भीम और दुर्योधन का गदा युद्ध आरम्भ हुआ। दुर्योधन अब अपना अन्तिम बदला लेने के लिए लड़ रहा था। इसलिए उसमें अपार आसुरी शक्ति आ गई थी। उसकी गदा भीम की गदा से इतनी जोर से टकराती थी कि लोहे में से चिनगारियां फूट-फूट पड़ती थीं। गदा चलाने में सदा से बेजोड़ माने जाने वाले भीम इस समय दुर्योधन से कच्चे पड़ रहे थे। दुर्योधन में ऐसी फुर्ती थी कि भीमसेन एक दो बार तो गहरी चोटें खाने से बचे मगर फिर गरमा उठे। उन्होंने भी दुर्योधन पर भयानक प्रहार किये। दो घड़ी तक एक-सी लड़ाई चलती रही। न यह हारे न वह हारा। इतनी देर में बड़े-बड़े योद्धा भीम और दुर्योधन का गदा युद्ध देखने के लिए जुड़ आये थे। उनके मुखों में जब तक “वाह भीम” या “शाबाश सुयोधन” के उत्साहवर्द्धक नारे फूट पड़ते थे। दिन ढलने लगा था। श्रीकृष्ण ने सोचा कि आज सूर्यास्त के साथ ही यह अठारह दिनों का महायुद्ध समाप्त हो जाना चाहिये। इसलिए वे ऐसी जगह पर खड़े हुए जहाँ से उनकी आवाज सुनकर भीम उनकी ओर एक बार अवश्य देखें। लड़ाई के बीच में दो एक बार जब दुर्योधन ने शास्त्र विरुद्ध गदा के प्रहार किये तब बलराम ने आगे बढ़कर उसे टोका था। बलराम की टोक पर गदा युद्ध बीच में एक बार कुछ देर के लिए रुका भी था। कृष्ण ने दुर्योधन की एक साधारण सी बेईमानी को लेकर बलराम के कान भरे। श्री बलराम में वैसे तो बड़ी-बड़ी अच्छाइयां थीं, पर एक बुराई यह थी कि वह बेहद सुरापान करते थे श्रीकृष्ण ने उनको इस ढंग से भरा कि वे एकदम उखड़ गये और दुर्योधन को डांटने लगे। इसी बीच श्रीकृष्ण ने आवाज लगाई “वाह भीम भैया!” भीम ने मुड़कर इनकी तरफ देखा तो उन्होंने अपनी जांघ पर हाथ मारकर उसे अपनी प्रतिज्ञा की याद दिलाई। जब सभा में द्रौपदी घसीट कर लाई गयी थी और दुर्योधन ने बड़ी निर्लज्जता से उसे अपनी जांघ पर बैठने के लिए बुलाया था तब भीम ने भरी सभा में यह प्रतिज्ञा की थी कि 'हे दुष्ट दुर्योधन द्रौपदी नहीं मेरी गदा एक दिन तेरी जांघ पर बैठेगी।' श्रीकृष्ण के संकेत देने से उन्हें अपनी प्रतिज्ञा याद आ गयी। वे और भी जोश में लड़ने लगे। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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