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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
धृतराष्ट्र और गांधारी का विलाप
हस्तिनापुर के राजमहलों में जब यह समाचार पहुँचा तो भारी कोहराम मच गया। राजा धृतराष्ट्र खबर सुनते ही पछाड़ खाकर गिर पड़े और बेसुध हो गये। रानी गान्धारी तो एकदम पत्थर की मूर्ति बन गयीं। इस रनिवास में पिछले अठारह दिनों में रोज ही दो चार राजवधुएं विधवा होती रही थीं। अब दुर्योधन की रानी के विधवा बनने के बानक भी बन चुके थे। बस घड़ी दो घड़ी में यह खबर आना ही चाहती थी कि युद्ध क्षेत्र में दुर्योधन की अन्तिम सांस छूट गयी। राजा धृतराष्ट्र सौ बेटों के बाप थे, लेकिन आज एकदम अनाथ हो चुके थे। विलाप करते हुए वे बार-बार यही कहते कि हाय मैंने भीष्म काका और विदुर काका जैसे सयानों की सूझ का लाभ न उठाया इसीलिए आज यह दिन देखना पड़ रहा है। हाय मैं अगर दुर्योधन को जुआ खेलने की आज्ञा न देता तो आज यह दिन मुझे न देखना पड़ता। वनवास के बाद जब पाण्डवों ने पांच गांव मांगे थे तब मैंने यदि दुर्योधन की बात न मानी होती तो मुझे आज का यह दिन न देखना पड़ता। मुझसे बड़ा अभागा आज दुनिया में कौन है। अरे ये प्राण कैसे कठोर है ऐसे अशुभ समाचार पाकर भी वे अभी तक शरीर से बाहर नहीं निकलते। मैं बहुत पापी हूँ। हस्तिनापुर के रनिवास में उस दिन ऊपर से नीचे तक चारों ओर अंधेरा था। पिंजरों में लटकते हुए पंछी भी एकदम मौन थे। पशुओं ने चारे में मुंह नहीं डाला था। नौकर-चाकर सब जहाँ-तहाँ निढाल से पडे हुए थे। किसी को किसी की सुध नहीं थी। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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