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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
कौवे और हंस की कहानी
एक बड़े धनी सौदागर के यहाँ एक कौवे का बच्चा कहीं से आकर गिर गया। सौदागर के बच्चों ने उसे दया करके पाल लिया। घर में कई बच्चे थे इसलिए वह कौवे का बच्चा सभी का लाड़ला हो गया। जो कुछ वे खाते थे वही उस कौवे के बच्चे को भी खिलाते थे। देखते ही देखते कौवा बहुत मोटा हो गया। उसका काला रंग और चमक उठा। सौदागर के बच्चों ने उसके गले और पैरों में सोने के गहने भी डाल दिए जिससे कि कौवा अपने को सब कौवों में श्रेष्ठ समझने लगा। वह अपने सौदागर की हवेली की मुंडेरों पर किसी भी कौवे, चीलों या चिड़िया को बैठने तक न देता था। जब किसी कौवे ने जलन में आकर उससे लड़ाई ठानी तो वह इस कौवे से हार जाता था। एक दिन बच्चे छत पर खेल रहे थे कौवा भी मुंडेर पर बैठा था तभी ऊपर से कुछ हंस उड़ते हुए दिखाई दिए। हंस काफी ऊंचे उड़ रहे थे। लड़कों में बहस होने लगी कि हमारा कौवा इतनी दूर उड़ सकेगा या नहीं? कौवा शेखी में आ गया, उसने कहा- “उड़ान भरने में मैं इन हंसों को अभी पछाड़ता हूँ।” यह कहकर कौवा उड़ा। उड़ते-उड़ते उसने हंसों को पकड़ लिया। एक हंस से उसने कहा- “मैं तुम्हारे साथ उड़ान में होड़ लगाना चाहता हूँ। क्या तुम मुझे अपने साथ उड़ने दोगे? हंस ने मुस्कराकर बड़ी विनम्रता से कहा- “हां-हां भाई, अवश्य उड़ो। यह आकाश सब पखेरूओं के लिए है। जिसके पंखों में जहाँ तक शक्ति हो उड़ ले।” हंस उड़ते चले, उड़ते चले। कौवा भी उनके साथ मजे-मजे में उड़ता चला। बल्कि कभी-कभी तो वह हंसों से भी ऊंची उड़ान भरकर वाह-वाही लूट लेता था। लेकिन हंस जब उड़ते हुए पश्चिम दिशा में आये तो हज़ारों मील लम्बा समुद्र नीचे दिखाई दिया। तब कौवे के पंखों ने जवाब दे दिया। हंस जब थकते थे तो समुद्र में तैरने लगते थे लेकिन कौवा यह नहीं कर सकता था। कौवा अपनी मूर्खतावश थोड़ी ही देर के बाद हवा में लड़खड़ा कर समुद्र में गिर गया और बेचारा लहरों की चपेट में आ गया। शल्य बोले- "हे कर्ण, कौवे की कहानी से पाठ सीखो।" |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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