महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
शल्य का स्वागत
नकुल और सहदेव के मामा शल्य अपने बड़े भांजे युधिष्ठिर का संदेशा पाकर उनसे मिलने के लिए चल पड़े। दुर्योधन ने सुना कि मद्रराज शल्य अपने भांजे युधिष्ठिर की सहायता के लिए आ रहे हैं। दुर्योधन ने सोचा कि इन्हें किसी तरह से अपने पक्ष में करना चाहिए। आर्यों की मद्र शाखा का प्रताप दुर्योधन भली-भाँति जानता था। मद्रों ने एक समय में मध्य एशिया के अनेक राज्यों, तुर्किस्तान, ईरान से लेकर अरब सिन्धु, पंजाब, दक्षिणावर्त आदि देशों को जीत लिया था। आधुनिक मिस्त्र देश का सही नाम भी मद्र देश ही है। यह भी कहा जाता है कि प्रसिद्ध सुलेमान पर्वत का असली नाम शल्यमान पर्वत है। ऐसे प्रतापी मद्रराज शल्य को अपनी ओर मिलाने के लिए छली दुर्योधन भला क्यों न प्रयत्न करता। उसने एक तरकीब की, महाराज शल्य के आने वाले रास्ते में उसने जगह-जगह खातिरदारी की बड़ी उत्तम व्यवस्था की। राजा शल्य जैसे ही किसी पड़ाव पर पहुँचते वैसे ही उनका भव्य स्वागत होने लगता। नाच-गाने, बढ़िया-बढ़िया भोजन, तरह-तरह के मनोरंजक खेल-तमाशों आदि की बड़ी ही अच्छी व्यवस्था की गयी थी। मद्र नरेश इस खातिरदारी से बहुत प्रसन्न हुए। उनका यही अनुमान था कि सारा प्रबन्ध पाण्डवों की ओर से हो रहा है। कुरुक्षेत्र की सीमा में जब वह पहुँचे तब उनकी खातिरदारियों में और अधिक वृद्धि हो गई। खुद दुर्योधन भी वहाँ छिपकर पहुँच गया था। ऐसी सेवाओं से प्रसन्न होकर महाराज शल्य ने व्यवस्थापक से कहा- "मेरे भांजे युधिष्ठिर को कहला दो कि मैं उनकी व्यवस्था से बहुत ही सन्तुष्ट हुआ हूँ।" व्यवस्थापक हाथ जोड़कर बोला- "धर्मावतार, आपकी सेवा के लिए यह व्यवस्था युवराज दुर्योधन की ओर से हुई है, और वह स्वयं भी आपकी सेवा में उपस्थित हैं।" यह सुनकर शल्य को लगा कि वह ठग लिये गये। पर जो बात मुख से निकल गयी सो निकल गयी। उन्होंने दुर्योधन को बुलाकर कहा- "हे दुर्योधन, तुमने मेरे नीतिवान भांजों को बहुत सताया है। मैं तो तुम्हें दण्ड देने के लिए यहाँ आया था। पर तुमने बड़ी चालाकी से मुझे सन्तुष्ट कर लिया है। मैं अब तुम्हारा अनिष्ट नहीं कर सकता। बोलो तुम क्या चाहते हो।" दुर्योधन हाथ जोड़कर बड़े ही मीठे ढंग से बोला- "हे मामा, आप जैसे पाण्डवों के मामा हैं, वैसे ही हमारे भी हैं। भाइयों-भाइयों का झगड़ा है। इसलिए आपको चाहिए कि आप कौरवों और पाण्डवों को समान दृष्टि से देखें। यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझें यह वर दें कि आप अपनी सेना के साथ मेरे पक्ष में रहकर पाण्डवों से लड़ेंगे।" |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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