महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
इन्द्र की कथा
मां बोली- “हे पुत्र! इस निकम्मी लज्जा से अपने को निकम्मा मत बना और तुम्हारे पिता को अपनी अपार शारीरिक शक्ति और प्रतापी सेना का घमण्ड है। गांव भर के सारे लड़के तुम्हें चाहते हैं। तुमसे प्रेरणा पाते हैं, उनको सेना के रूप में संगठित करो और जाओ अपने अत्याचारी पिता का वध करके मुझे शीघ्र से शीघ्र विधवा बनाओ। यही मेरे दूध का मूल्य होगा, हे पुत्र! तुम जनजाति के इन्द्र बनो और देवों के घमण्ड को चूर करो। हे पुत्र! तुम भी देव हो। तुम अपनी जाति के सिरमौर बनो, यह मेरा आशीर्वाद है।” अपनी मां के द्वारा इन्द्र पद की लालसा लेकर बेटा उसका चरण छूकर बाहर आया। उसने गांव के सयाने लड़कों और मित्रों के सामने निःसंकोच भाव से अपने जन्म का इतिहास बतलाया। सुनकर उसके कई साथियों ने दबी जबान से अपने-अपने जन्म की सच्चाई को प्रकट कर दिया। जहां-जहाँ देवों का राज्य था, वहां-वहाँ आमतौर से ऐसे ही अत्याचारों की सैकड़ों कहानियां भरी पड़ी थीं। एक युवक कहने लगा “यह देव शासक लोग, हम से कड़ी मेहनत लेकर सोना, चांदी आदि धातुओं एवं मणि-माणिके खुदवाते हैं। अपने गुलछर्रे उड़ाते हैं, हमें सताते हैं। उनकी स्त्री की मर्यादा बहुत बड़ी है। हम दीन-हीनों की स्त्रियों का उनकी दृष्टि में कोई मूल्य नहीं। हे मित्र! तुम्हारी तपस्वी माता ने तुम्हें इन्द्र बनने का वरदान दिया हैं। हम भी यह मानते हैं कि तुम हमारे इन्द्र बनने के सच्चे अधिकारी हो। चलो देवों की अकल ठिकाने लगा दो। इन्द्र ने कहा- “वह यदि देव हैं तो हम असुर हैं, यानी हम प्रणापन है। हम प्राणव से यह प्रतिज्ञा करते हैं कि अपनी संगठिन शक्ति से शत्रुओं की कुमति को कुचल देंगे।” भीष्म कहने लगे- “हे पुत्रों! जो इन्द्र बाद में देवों का राजा बना उसी ने पहले असुर पद धारण किया था।" इन्द्र और उसके साथियों ने सचमुच अपने असुर का प्राणवान होने का प्रत्यक्ष चमत्कार दिखाया। गांव-गांव के विद्रोही लड़कों ने इन्द्र के झण्डे के नीचे इकट्ठे हो देव सरदारों की अकल ठिकाने लगानी शुरु कर दी। देव लोग घबड़ाये। उन्होंने अपने हाकिम कुशिक के दरबार में गोहार लगा दी। कुशिक ने घमण्ड से कहा- “मैं, मैं इन नालायक लड़कों की अकल ठिकाने लगा दूंगा, चलो सेना सजाओ और इन दुष्टों के गांव के गांव उजाड़ दो।” |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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