गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 74

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
दूसरा अध्याय
सांख्‍ययोग


व्‍यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्‍दन।
बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्‍यवसायिनाम्।।41।।

हे कुरुनंदन! योगवादी की निश्‍चयात्‍मक बुद्धि एकरूप होती है, परंतु अनिश्‍चयवालों की बुद्धियां अनेक शाखाओं वाली और अनंत होती हैं। 41

टिप्‍पणी - जब बुद्धि एक से मिटकर अनेक (बुद्धियां) होती है, तब वह बुद्धि न रहकर वासना का रूप धारण करती है। इसलिए बुद्धियों से तात्‍पर्य है वासनाएं।

यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्‍त्‍यविपश्चित:।
वेदवादरता: पार्थ नान्‍यदस्‍तीति वादिन:।।42।।
कामात्‍मान: स्‍वर्गपरा जन्‍मकर्मफलप्रदाम्।
क्रियाविशेपबहुलां भोगैश्‍वर्यतिं प्रति।।43।।
मोगैश्‍वर्यप्रसक्‍तानां तयापहृतचेतसाम्।
व्‍यवसायत्मिका बुद्धि: समाधौ न विधीयते।।44।।

अज्ञानी, वेदवादी, ʻइसके सिवा और कुछ नहीं है̕ यह कहने वाले, कामना वाले, स्‍वर्ग को श्रेष्‍ठ मानने वाले, जन्‍म-मरण- रूपी कर्म के फल देने वाली, भोग और ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए किये जाने वाले कर्मों के वर्णन से भरी हुई बातें बढ़ा-बढ़ाकर कहते हैं। भोग और ऐश्‍वर्य में आसक्‍त रहने वाले इन लोगों की बुद्धि मारी जाती है, इनकी बुद्धि न तो निश्‍चय वाली होती है और न वह समाधि में ही स्थिर हो सकती है।[1]

टिप्‍पणी- योगवाद के विरुद्ध कर्मकांड अथवा वेदवाद का वर्णन उपर्युक्‍त तीन श्‍लोकों में आया है। कर्मकांड या वेदवाद का मतलब फल उपजाने के लिए मंथन करने वाली अगणित क्रियाएं। क्रियाएं वेद के रहस्‍य से, वेदांत से अलग और अल्‍प फल वाली होने के कारण निरर्थक हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 42, 43, 44 वां श्लोक

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
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दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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