गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
दूसरा अध्याय
सांख्ययोग
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा। देहधारी को जैसे इस शरीर में कौमार, यौवन और जरा की प्राप्ति होती है, वैसे ही अन्य देह भी मिलती है। उसमें बुद्धिमान पुरुष को मोह नहीं होता। 13 मात्रास्पर्शास्तिु कौन्तेय शीतोष्णसुखदु:खदा:। हे कौंतेय! इंद्रियों के स्पर्श सरदी, गरमी, सुख और दु:ख देने वाले होते हैं। वे अनित्य होते हैं, आते हैं और जाते हैं। उन्हें तू सह। 14 यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ। हे पुरुषश्रेष्ठ ! सुख-दु:ख में सम रहने वाले जिस बुद्धिमान पुरुष को ये विषय व्याकुल नहीं करते, वह मोक्ष के योग्य बनता है। 15 नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सत:। असत का अस्तित्व नहीं है और सत का नाश नहीं है। इन दोनों का निर्णय ज्ञानियों ने जाना है। 16 |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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