गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 35

गीता माता -महात्मा गांधी

Prev.png
गीता-बोध
तेरहवां अध्‍याय


प्राणियों के अन्‍दर तो वह है ही, क्‍योंकि सर्वव्‍यापक है। वैसे ही वह गति करता है और स्थिर भी है। सूक्ष्‍म है, इसलिए वह ऐसा भी है कि न जान पड़े। दूर भी है और नजदीक भी है। नाम-रूप का नाश है, तथापि वह तो है ही, इस प्रकार अविभक्‍त है; पर असंख्‍य प्राणियों में है, यह भी कहते हैं, इससे वह विभक्‍त रूप से भी भासित होता है। वह उत्‍पन्‍न करता है, पालता है और वही मारता है। तेजों का तेज है, अंधकार से परे है, ज्ञान का किनारा उसमें आ गया है। इन सबमें मौजूद परब्रह्म यही जानने योग्‍य अर्थात ज्ञेय है। ज्ञानमात्र की प्राप्ति केवल उसकी प्राप्ति के लिए ही है।

प्रभु और उसकी माया दोनों अनादि से चलते आये हैं। माया में से विकार पैदा होते हैं और उनसे-अनेक प्रकार के कर्म पैदा होते हैं। माया के कारण जीव सुख-दु:ख, पाप-पुण्‍य का भोगने वाला बनता है। यह जानकर जो अलिप्‍त रहकर कर्तव्‍य- कर्म करता हे, वह कर्म करता हुआ भी फिर जन्‍म नहीं लेता; क्‍योंकि वह सर्वत्र ईश्वर को देखता है और उसकी प्रेरणा के बिना एक पत्ता तक नहीं हिल सकता, यह जानकर वह अपने बारे में अहंता को नहीं मानता है, अपने को शरीर से अलग देखता है और समझता है कि जैसे आकाश सर्वत्र होते हुए भी निर्लिप्‍त ही रहता है, वैसे जीव शरीर में रहते हुए भी ज्ञान द्वारा निर्लिप्‍त रह सकता है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः