गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 252

गीता माता -महात्मा गांधी

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6 : गीता का अर्थ


इसलिए मैं समझता हूँ कि मेरा गीता का अर्थ सबके अनुकूल न होगा। ऐसी स्थिति में यदि मैं इतना कहूँ कि गीता के मेरे अर्थ पर मैं किस तरह पहुँचा और धर्मशास्त्रियों के अर्थ निकालने में मैंने किन-किन सिद्धान्तों को मान्य रखा है तो यही बस होगा, परिणाम चाहिए। "जो शत्रु मरने योग्य हैं, वे तो स्वयं ही मरे हुए हैं। मुझे तो उनको मारने में मात्र निमित्‍त बनना है।"

1889 के साल में गीता जी से मेरा प्रथम परिचय हुआ। उस समय मेरी उम्र 20 साल की थी। मै अहिंसा-धर्म को बहुत ही थोड़ा समझता था। शत्रु को भी प्रेम से जीतना चाहिए, यह मैं गुजराती कवि शामल भट्ट के इस छप्पय से ‘‘पाणी आपे ने वाय भलुं भोजन तो दीजे‘‘ सीखा था। इसमें जो सत्य है, वह मेरे हृदय में अच्छी तरह बैठ गया था, किन्तु उस समय मुझे उसमें से जीव-दया की स्फुरणा नहीं हुई थी। इसके पहले मैं देश ही में मांसाहार कर चुका था।

मैं मानता था कि सर्पादिका नाश करना धर्म है। मुझे याद आता है कि मैने खटमल इत्यादि जीव मारे हैं। मुझे याद आता है कि मैंने एक बिच्छू को भी मारा था। आज यह समझा हूँ कि ऐसे जहरीले जीवों को भी न मारना चाहिए। उस समय मैं यह मानता था कि हमें अंग्रेज़ों के साथ लड़ने के लिए तैयारी करनी होगी। 'अंग्रेज राज्य करते हैं, इसमें आश्चर्य ही क्या है' -इस आशय की एक कविता गुनगुनाया करता था मेरा मांसाहार इसी तैयारी का कारण था। विलायत जाने के पहले मेरे ऐसे विचार थे। मैं मांसाहार इत्यादि से बच गया, इसका कारण माता को दिये हुए वचनों को मरते दम तक पालन करने की मेरी वृत्ति ही थी। सत्य के प्रति मेरे प्रेम ने बहुत-सी आपत्तियों में से मेरी रक्षा की है।

अब दो अंग्रेजों से प्रसंग पड़ने पर मुझे गीता पढ़नी पड़ी। ‘पढ़नी पड़ी‘ इसलिए कहता हूं, क्योंकि उसे पढ़ने की मुझे कोई खास इच्छा न थी; लेकिन जब इन दो भाइयों ने मुझे उनके साथ गीता पढ़ने को कहा तब मैं शर्मिन्दा हुआ। मुझे अपने धर्मशास्त्रों का कुछ भी ज्ञान नहीं है, इस ख्याल से मुझे बड़ा दुःख हुआ। मालूम होता है, इस दुःख का कारण अभिमान था। मेरा संस्कृत का अध्ययन ऐसा तो था ही नहीं कि गीता जी के सब श्लोकों का अर्थ मैं बिना किसी मदद के ठीक-ठीक समझ लूं। ये दोनों भाई तो कुछ भी न समझते थे। उन्होंने सर एडविन ऑरनाल्ड का गीता जी का उत्तमोत्तम काव्यानुवाद मेरे सामने रख दिया। मैंने तो फौरन ही उस पुस्तक को पढ़ डाला और उस पर मुग्ध हो गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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