गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
चौहदवां अध्याय
गुणत्रयविभागयोग
सत्त्वं सुखे संजयति रज: कर्मणि भारत। हे भारत! सत्व आत्मा को शांति सुख का संग कराता है, रजस कर्म और तमस ज्ञान को ढककर प्रमाद का संग कराता है। रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत। हे भारत! जब रजस और तमस दबते हैं तब सत्व ऊपर आता है, जब सत्व और तमस दबते हैं तब रजस और जब सत्व तथा रजस दबते हैं तब तमस उभरता है। सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते। सब इंद्रियों द्वारा इस देह में जब प्रकाश और ज्ञान का उद्भव होता है तब सत्वगुण की वृद्धि हुई है, ऐसा जानना चाहिए। लोभ: प्रवृत्तिरारम्भ: कर्मणामशम: स्पृहा। हे भरतर्षभ! जब रजोगुण की वृद्धि होती है तब लोभ प्रवृत्ति, कर्मों का आरंभ, अशांति और इच्छा का उदय होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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