गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
नवां अध्याय
राज विद्याराज गुह्य योग
किं पुनर्ब्राह्मणा: पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा। तब फिर पुण्यवान ब्राह्मण और राजर्षि, जो मेरे भक्त हैं उनका तो कहना ही क्या है! इसलिए इस अनित्य और सुख- रहित लोक में जन्मकर तू मुझे भज। मुझमें मन लगा, मेरा भक्त बन, मेरे निमित्त यज्ञ कर, मुझे नमस्कार कर, इससे मुझमें परायण होकर आत्मा को मेरे साथ जोड़कर मुझे ही पावेगा। ॐ तत्सत् इति श्रीमद्भगवतद्गीता रूपी उपनिषद् अर्थात ब्रह्मविद्यान्तर्गत योगशास्त्र के श्रीकृष्णार्जुनसंवाद का ʻराजविद्याराजगुह्मयोग̕ नामक नवां अध्याय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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