गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 115

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
छठा अध्याय
ध्‍यानयोग


समं कार्यशिरोग्रीवं धारयन्‍नचलं स्थिर:।
संप्रेक्ष्‍य नासिकाग्रं स्‍वं दशश्‍चानवलोकयन्।।13।।
प्रशान्‍तात्‍मा विगतभीर्ब्र ह्मचारिव्रते स्थित:।
मन: संयम्‍य मच्चितों युक्‍त आसीत मत्‍पर:।।14।।

धड़, गर्दन और सिर एक सीध में अचल रखकर, स्थिर रहकर-इधर-उधर न देखता हुआ, अपने नासिकाग्र पर निगाह टिकाकार पूर्ण शांति से, निर्भय होकर, ब्रह्मचर्य में दृढ़ रहकर, मन को मारकर, मुझमें परायण हुआ योगी मेरा ध्‍यान धरता हुआ बैठे।

टिप्‍पणी- नासिकाग्र से मतलब है भृकुटी के बीच का भाग।[1] ब्रह्मचारी व्रत का अर्थ केवल वीर्य-संग्रह ही नहीं है, बल्कि ब्रह्म को प्राप्‍त करने के लिए आवश्‍यक अहिंसादि सभी व्रत हैं।

युजंन्‍नेवं सदात्‍मानं योगी नियतमानस:।
शान्ति निर्वाणपरमां मत्‍संस्‍थामधिगच्‍छति।।15।।

इस प्रकार जिसका मन नियम में है ऐसा योगी आत्मा को परमात्‍मा के साथ जोड़ता है और मेरी प्राप्ति में मिलने वाली मोक्षरूपी परमशान्ति प्राप्‍त करता है।

नात्‍यश्‍नतस्‍तु योगोऽस्ति न चैकान्‍तमनश्‍नत:।
न चाति स्‍वप्‍नशीलस्‍य जाग्रतो नैव चार्जुन।।16।।

हे अर्जुन! यदि समत्‍वरूप योग न तो प्राप्‍त होता है ठूसंकर खाने वाले को, न उपवासी को, वैसी ही, वह बहुत सोने वाले या बहुत जागने वाले को प्राप्‍त नहीं होता।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. देखो अध्‍याय 5-27

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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