गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 116

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
छठा अध्याय
ध्‍यानयोग


युक्‍ताहारविहारस्‍य युक्‍तचेष्‍टस्‍य कर्मसु।
युक्‍तस्‍वप्‍नावबोधस्‍य योगो भवति दु:खहा।।17।।

जो मनुष्‍य आहार-विहार में, दूसरे कर्मों में, सोने-जागने में परिमित रहता है, उसका योग दु:खभंजन हो जाता है।

यदा विनियतं चित्तमातमन्‍येवाबतिष्‍ठते।
नि:स्‍पृह: सर्वकामेभ्‍यो युक्‍त इत्‍युच्‍यते तदा।।18।।

भली-भाँति नियमबद्ध मन जब आत्‍मा में स्थिर होता है और मनुष्‍य सारी कामनाओं से निस्‍पृह हो बैठता है तब वह योगी कहलाता है।

यथा दीपो निदातस्‍थो नेडते सोपमा स्‍मृता।
योगिनो यतचित्तस्‍य युंजतो योगमात्‍मन:।।19।।

आत्मा को परमात्‍मा के साथ जोड़ने का प्रयत्‍न करने वाले स्थिर चित्त योगी की स्थिति वायु-रहित स्‍थान में अचल रहने वाले दीपक की-सी कही गई है।

यत्रोपरमते चितं निरुद्धं योगसेवया।
यत्र चवात्‍मनात्‍मानं पश्‍यन्‍नात्‍मनि तुष्‍यति।।20।।
सुखमात्‍यन्तिकं यत्तद्बुद्धिग्राह्यमतीन्द्रियम्।
वेत्ति यत्र न चैवायं स्थितश्‍चलति तत्त्वत:।।21।।
यं लब्‍ध्‍वा चापरं लाभं मन्‍यते नाधिकं तत:।
यस्मिन्स्थितो न दु:खेन गुरुणापि विचाल्‍यते।।22।।
तं विद्याद्दु:खसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम।
स निश्‍चयेन योक्‍तव्‍यो योगोऽनिर्विष्‍णचेतसा।।23।।

योग के सेवन से अंकुश में आया हुआ मन जहाँ शांति पाता है, आत्मा से ही आत्मा को पहचानकर आत्‍मा में जहाँ मनुष्‍य संतोष पाता है और इंद्रियों से परे और बुद्धि से ग्रहण करने योग्‍य अनंत सुख का जहाँ अनुभव होता है, जहाँ रहकर मनुष्‍य मूल-वस्‍तु से चलायमान नहीं होता और जिसे पाने पर दूसरे किसी लाभ को वह उससे अधिक नहीं मानता और जिसमें स्थिर हुआ महादु:ख से भी डगमगाता नहीं, उस दु:ख के प्रसंग से रहित स्थिति को नामयोग की स्थिति समझना चाहिए। यह योग ऊबे बिना दृढ़तापूर्वक साधन योग्य है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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