गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
तेरहवां अध्याय
क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग
श्रीभगवानुवाच श्री भगवान बोले- हे कौंतेय! यह शरीर क्षेत्र कहलाता है और इसे जो जानता है उसे तत्व ज्ञानी योग क्षेत्रज्ञ कहते हैं। क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत। और हे भारत! समस्त क्षेत्रों, शरीरों में स्थित मुझको क्षेत्रज्ञ जान। मेरा मत है कि क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के भेद का ज्ञान ही ज्ञान है। तत्क्षेत्रं यच्च यादृवच यद्विकारि यतश्च यत्। यह क्षेत्र क्या है, कैसा है, कैसे विकार वाला है, कहाँ से है और क्षेत्रज्ञ कौन है, उसकी शक्ति क्या है, यह मुझसे संक्षेप में सुन। ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोभिर्विविधं: पृथक्। विविध छंदो में, भिन्न-भिन्न प्रकार से और उदाहरण, युक्तियों द्वारा, निश्चययुक्त ब्रह्मसूचक वाक्यों में ऋषियों ने इस विषय को बहुत गाया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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