गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 157

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
ग्‍यारहवां अध्याय
विश्‍वरूपदर्शनयोग


इस अध्‍याय में भगवान अपना विराट स्‍वरूप अर्जुन को बतलाते हैं। भक्‍तों को यह अध्‍याय बहुत प्रिय है। इसमें दलीलें नहीं बल्कि केवल काव्‍य है। इस अध्‍याय का पाठ करते-करते मनुष्‍य थकता ही नहीं।  

अर्जुन उवाच
मदनुग्रहाय परमं ग्रह्यमध्‍यात्‍मसंज्ञितम्।
यत्‍वयोक्‍तं वचस्‍तेन मोहोऽयं विगतो मम।।1।।

अर्जुन बोले-

आपने मुझ पर कृपा करके यह आध्‍यात्मिक परम रहस्‍य कहा है। आपके मुझसे कहे हुए इन वचनों से मेरा यह मोह टल गया है।

भवाप्‍ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्‍तारशो मया।
त्‍वत्त: कमलपत्राक्ष महात्‍म्‍यमपि चाव्‍ययम्।।2।।

प्राणियों की उत्‍पत्ति और नाश के संबंध में आपसे मैंने विस्‍तारपूर्वक सुना। हे कमलपत्राक्ष, उसी प्रकार आपका अविनाशी महात्‍म्‍य भी सुना।

एवमेतद्ययात्‍थ त्‍वमात्‍मनं परमेश्‍वर।
द्रष्‍टुमिचछामि ते रूपमैश्‍वरं पुरुषोत्तम।।3।।

हे परमेश्वर! आप जैसा अपने को पहचान वाते हैं वैसे ही हैं। हे पुरुषोत्तम! आपके उस ईश्वरी रूप के दर्शन करने की मुझे इच्‍छा होती है।  

मन्‍यसे यदि तच्‍छक्‍यं मया द्रष्‍टुमिति प्रभो।
योगेश्‍वर ततो मे त्‍वं दर्शयात्‍मानमव्‍ययम्।।4।।

हे प्रभो! वह दर्शन करना मेरे लिए संभव मानते हैं तो हे योगेश्‍वर! उस अव्‍यय रूप का दर्शन कराइए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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