गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
ग्यारहवां अध्याय
विश्वरूपदर्शनयोग
अर्जुन उवाच अर्जुन बोले- आपने मुझ पर कृपा करके यह आध्यात्मिक परम रहस्य कहा है। आपके मुझसे कहे हुए इन वचनों से मेरा यह मोह टल गया है। भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तारशो मया। प्राणियों की उत्पत्ति और नाश के संबंध में आपसे मैंने विस्तारपूर्वक सुना। हे कमलपत्राक्ष, उसी प्रकार आपका अविनाशी महात्म्य भी सुना। एवमेतद्ययात्थ त्वमात्मनं परमेश्वर। हे परमेश्वर! आप जैसा अपने को पहचान वाते हैं वैसे ही हैं। हे पुरुषोत्तम! आपके उस ईश्वरी रूप के दर्शन करने की मुझे इच्छा होती है। मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो। हे प्रभो! वह दर्शन करना मेरे लिए संभव मानते हैं तो हे योगेश्वर! उस अव्यय रूप का दर्शन कराइए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज