गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
ग्यारहवां अध्याय
विश्वरूपदर्शनयोग
श्री भगवानुवाच श्रीभगवान बोले- हे पार्थ! मेरे सैकड़ों और हजारों रूप देख। वे नाना प्रकार के दिव्य, भिन्न-भिन्न रंग और आकृति वाले हैं। पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा। हे भारत! आदित्यों, वसुओं, रुद्रों, दो अश्विनीकुमारों और मरुतों को देख। पहले न देखे गये, ऐसे बहुत-से आश्चर्यों को तू देख। इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्। हे गुडाकेश! यहाँ मेरे शरीर में एक रूप से स्थित समूचा स्थावर और जंगम जगत तथा और जो कुछ तू देखना चाहता हो वह आज देख। न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा। इन अपने चमचक्षुओं से तू मुझे देख नहीं सकता। तुझे मैं दिव्य चक्षु देता हूँ। तू मेरा ईश्वरीय योग देख। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज