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- गोपालोचितनव्यवेषवलनै रक्षाविधानैद्र्विजाद्याशीर्भिः सुदिनादलभ्यरचनैर्व्रज्यार्हनीराजनैः।
- संगानान्वितवाद्यनृत्यनिकरैः शश्रवज्जयाद्यारवैः श्रीमान् गोपमहेन्द्रसूनुरगमद्रामेण घेनुरनु।।
‘ओह! बलिहारी है श्रीकृष्णचन्द्र के इस अप्रतिम सौन्दर्य की।
- सखा साथ, बल भैया साथ। राजत रुचिर मंगली माथ।।
- बीच अछत सु कवन छबिः गनौं। मोती जमे चंद मधि मनौं।।
‘अरे! धेनु समूह का श्रृंगार, चमक-दमक देखो-
- गाइन की छवि नहिं कहि परै। रूप अनूप सब के हिय हरै।।
- कंचन भूषन सब के गरै। घनन घनन घंटागन करै।।
- उज्जल बरन सु को है हंस। कामधेनु सब जिन कौ अंस।।
- दरपन सम तन अति दुति देत। जिन मधि हरि झाँई झुकि लेत।।
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