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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
48. अघासुर के पूर्वजन्म का वृत्तान्त; अघासुर के वध पर देववर्ग के द्वारा श्रीकृष्ण का अभिनन्दन
उस प्रणाली का अनुकरण तो इनके लिये स्वाभाविक है, वे करेंगे ही और वहीं हंसवाहिनी को अवकाश भी मिल ही जाता है। जो हो, परमानन्द में विभोर, श्रीयमुना की ओर अग्रसर होते हुए बालक अपने कन्हैया भैया की कीर्ति एक दूसरे को सुना रहे हैं-
और श्रीकृष्णचन्द्र? ओह! जय हो लीलामय की लीला की! वे तो अघासुर पर विजय का सम्पूर्ण श्रेय अपने सखाओं को ही देते जा रहे हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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