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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
45. वन में बलराम-श्रीकृष्ण की गोप-बालकों के साथ निलायन-क्रीड़ा-लुकाछिपी का खेल; व्योमासुर का वध
व्योम ने अविलम्ब अपना कर्तव्य निश्चित कर लिया। उस महामायावी ने देखते-देखते ही चोर बने हुए गोप-शिशु जैसा अपना रूप भी बना लिया-
तथा फिर उसी क्रीड़ामण्डली में जाकर सम्मिलित हो गया। गोपशिशुओं ने सर्वथा नहीं जाना। बाल्यलीलाविहारी श्रीकृष्णचन्द्र भी क्रीड़ा रसपान में निमग्न हैं। इन सबकी अनजान में ही व्योमासुर अपनी नृशंस योजना में प्रवृत्त हो गया; जो करना चाहता था, करने लगा-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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