श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
42. वत्सासुर-उद्धार
किंतु दूसरे ही क्षण श्रीकृष्णचन्द्र के मुख पर उज्ज्वल ह्रास देखकर, अग्रज को उल्लासवश ताली पीटते देखकर उनका भय जाता रहता है। अवश्य ही वत्सासुर के उस भीषण बृहत शरीर को देखकर उनके आश्चर्य का पार नहीं रहता। और अब तो सभी बालक एक स्वर से श्रीकृष्णचन्द्र को साधुवाद देने लगते हैं-
अन्तरिक्ष से परिसंतुष्ट हुए देववृन्द भी श्रीकृष्णचन्द्र पर सुमन वृष्टि करने लग जाते हैं-
वत्सासुर की चरम परिणति क्या हुई, इसे भी-गोपशिशुओं ने तो नहीं-सुरसमुदाय ने अवश्य देख लिया-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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