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- नँदालाल बजाई बाँसुरी श्रीजमुना के तीर री।
- अधर कर मिलि सप्त स्वर सौं उपजत राग रसाल री।।
- व्रजजुबती धुनि सुनि उठ धाई, रही न अंग सँभार री।
- छूटी लट लपटात बदन पर, टूटी मुक्ता-माल री।।
- बहत न नीर, समीर न डोलत वृंदा-बिपिन सँकेत री।
- सुनि थावर अचेत चेतन भए, जंगम भए अचेत री।।
- अफल फरे, फल-फूल भए री, जरे हरे भए पात री।
- उमग प्रेम जल चल्यौ सिखर तें, गरे गिरिन के गात री।।
- तृन न चरत मिरिगा-मिरिगी दोउ, तान परी जब कान री।
- सुनत गान गिरि परे धरनि पर, मानौं लागे बान री।।
- सुरभी लाग दियौ केहरि कौं, रहत श्रवन हीं डार री।
- भेक भुजंगम फन चढ़ि बैठे, निरखत श्रीमुख चारु री।।
- खग रसना रस चाख बदत नहिं, नैन मूँदि मुनि धार री।
- चाखत फलहि न परे चोंच ते, बैठे पाँख पसार री।।
- सुर नर असुर देव सब मोहे, छाए ब्योम विमान री।
- चत्रभुजदास कहौ, को न बस भए या मुरली की तान री।।
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