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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
37. व्रजवासियों के यमनुा-पार जाने का वर्णन; श्रीकृष्ण का वृन्दावन की शोभा का निरीक्षण करके प्रफुल्लित होना, शकटों द्वारा आवास-निर्माण
अपनी माता के पीछे-पीछे वे गोवत्स भी सर्वत्र सकुशल पार उतर रहे हैं-
जो नवप्रसूत, आजकल में उत्पन्न हुए अत्यन्त छोटे गोवत्स हैं, स्वयं तैरकर पार जाने में असमर्थ हैं, उन्हें संतरण-पटु गोप अपने कंधों पर बिठाकर, स्वयं तैरकर उस पार ले जा रहे हैं। उनके चार पैरों में से दो को वामस्कन्ध पर, दो को दक्षिण पर धारण कर, गोवत्सों को प्रथम सुखपूर्वक पीठ एवं कंधे पर यथोचित बैठाकर, कहीं वे बीच धारा में कूद न पड़ें, इस आशंका से लिये उनके चारों पैरों को अपने वक्षःस्थल से सटाकर एक हाथ के द्वारा दृढ़ता पूर्वक दबाये हुए एवं दूसरे हाथ से स्वच्छन्द तैरते हुए वे कुशल तैराक गोप उन्हें पार पहुँचा दे रहे हैं। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीआनन्दवृन्दावनचम्पूः)
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