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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
77. कंस के अनुचरों का मुञ्जाटवी में स्थित गोवृन्द को पुनः दावाग्नि से वेष्टित करना और भयभीत गोप-बालकों का श्रीकृष्ण-बलराम को पुकारना; श्रीकृष्ण का बालकों को अपने नेत्र मूँदने को कहकर स्वयं उस प्रचण्ड दावानल को पी जाना
इधर शिशुओं की आँखें निमीलित होते ही श्रीकृष्णचन्द्र की अघट-घटना-पटीयसी योगमाया-शक्ति का विकास हुआ। देखते-देखते ही नीलसुन्दर के मृदुल सुकोमल श्रीअंगों के अन्तराल से तत्क्षण ही महाजलधर तुल्य एक प्रकाण्ड विग्रह का आविर्भाव हुआ। विग्रह के अनुरूप ही उसमें अत्यन्त सुबृहत मुख है। यह लो, वह मुख खुल पड़ा और वे महामहेश्वर उस मुख के पथ से ही अनायास उस सर्वभक्षक दावानल को पी गये!
अवश्य ही पीते समय वह महाभयंकर वनवह्नि श्रीकृष्णचन्द्र की अलङ्घनीय इच्छा शक्ति के प्रभाव से सुधा मधुर पानीय के रूप में परिणत हो गयी-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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