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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
76. प्रलम्बासुर-उद्धार
कौन जान सकता है व्रजेन्द्र नन्दन की गूढ़ अभिसंधि को। इधर तो कौतुक का आनन्द उद्वेलित हो उठा है और उधर नीलसुन्दर कालिय के सहस्र फणों को चूर्ण-विचूर्ण करने वाले, महामहेश्वर श्रीकृष्णचन्द्र पराजय स्वीकार करने जा रहे हैं। वे तो करेंगे ही। उन्हें प्रलम्ब के पीठ पर बलराम को चढ़ाना जो है!
केवल वे अकेले हारे हों, सो नहीं; उनके दल का प्रत्येक शिशु ही पराजित हो गया-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीगोपालचम्पूः)
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