श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
71. महाकाय सर्प के चंगुल से विजयी होकर निकले हुए श्रीकृष्ण का क्रमशः सखाओं, मैया रोहिणी जी, बाबा, अन्य वात्सल्यवती गोपियों तथा बलराम जी द्वारा आलिंगन; फिर गौओं, वृषभों एवं वत्सों से गले लग कर मिलना; सम्पूर्ण व्रज वासियों का रात्रि में यमुना-तट पर ही विश्राम
जय हो बाल्य लीला रसमत्त प्रभु व्रजेन्द्र नन्दन की! प्रभु की शिशु सुलभ परम रसमय सरल वचनावली की!! और वह देखो- वहाँ कालिय ह्नद की ओर! जहाँ उस सुविस्तीर्ण ह्नद के जल पर एक तृण का चिह्न तक उपलब्ध न था, वहीं सर्वत्र मानो कमल पुष्पों का ही आस्तरण आस्तृत हो रहा है, राशि-राशि विकसित पद्मों से सम्पूर्ण ह्नद आच्छादित हो रहा है। इतना ही नहीं, ह्नद के स्थान-स्थान पर एकत्र किये हुए पद्म पुष्पों का अंबार लग रहा है। दृश्य देख कर व्रजेश्वर का रोम-रोम खिल उठा। व्रजपुर वासियों के आनन्द का पार नहीं रहा। आदेश भर की देर थी। सभी सेवक कंस-सम्राट के लिये आवश्यक उपहार-सामग्री एकत्र करने में जुट पड़े। व्रज से शकटों का समूह आया। भेंट की अन्य सामग्रियाँ आयीं। देखते-देखते ही तीन कोटि पद्म पुष्प सहस्र शकटों में पूरित कर दिये गये और गोप रक्षकों के संरक्षण में शकट मधुवन की ओर चल पड़े-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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