पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
93. उपसंहार
'आप जिनके सम्बन्ध में पूछते हैं, वे सब अब कथा के पात्र हो गये।' किसी प्रकार अर्जुन ने हिचकते हुए कहना प्रारम्भ किया- 'राजन ! जिनके प्रभाव से मैंने महाराज द्रुपद की सभा में मत्स्यवेध करके पाञ्चाली को प्राप्त किया, जिनके एक शाकपत्र खा लेने से त्रिभुवन के समस्त प्राणियों का पेट भर गया और महर्षि दुर्वासा का संकट हम सब पर से टल गया, जिनकी कृपा कटाक्ष से अनुगृहीत मैंने इन्द्र को भी देवताओं के साथ विफल मनोरथ करके अग्नि को खाण्डव वन भेंट किया, जिनके प्रभाव से मैंने युद्ध में भगवान पुरारि को सन्तुष्ट किया, जिनकी अनुग्रह दृष्टि ने मुझे इस योग्य बनाया कि सुरों ने अपने शत्रु असुरों को जीतने की प्रार्थना की और इसी शरीर से मैं स्वर्ग जाकर सुरेन्द्र के साथ उनके सिंहासन पर बैठ सका, मुझ दुर्बुद्धि ने उन्हें अपना सारथि बनाया। त्रिपुर-निर्माण समर्थ दानवेन्द्र मय ! शरण ! पुकारते आये और आपके लिये अद्भुत सभा-भवन बनाकर अपने ही आभारी मानते रहे, यह श्रीकृष्ण की ही कृपा थी। यह श्रीकृष्ण की कृपा थी कि संग्राम में भीष्म, द्रोण, कर्ण के-अश्वत्थामा के अमोघ, अमित महिमाशाली अस्त्रों ने मेरा स्पर्श भी नहीं किया। यह श्रीकृष्ण का प्रभाव था कि मैं व्यूहबद्ध शत्रु-सेना के मध्य भूमि पर खड़ा रहा और मुझे कोई मार नहीं सका। मैं जयद्रथ को मारकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर सका, यह श्रीकृष्ण का प्रभाव था। श्रीकृष्ण कृपा न करते, हम सचमुच युद्ध करके कौरवों पर विजय प्राप्त कर सकते थे? श्रीकृष्ण कृपा न करते, भाई भीमसेन जरासन्ध या दुर्योधन को मार पाते? श्रीकृष्ण कृपा न करते, अश्वत्थामा के ब्रह्मशिरास्त्र से हम बचते अथवा हमारे वंश का बीज पुनुरूज्जीवित होता? वे सर्वेश्वरेश्वर सर्वसमर्थ मुझे सखा कहते थे, मेरा सम्मान रखते थे और मैं दुर्बुद्धि उनके प्रभाव को न जानकर उनके साथ एक आसन पर बैठता था, परिहास में उनकी हँसी तक उड़ा लेता था। उन अनन्त करुणामूर्ति ने मेरा मन रखा, मान रखा और माता के समान मेरे सब अपराध सहकर सदा मुझे स्नेह दान करते रहे। झूठी बात है कि अर्जुन अमित पराक्रमी है। झूठी बात है कि मेरे पास अमोघास्त्र हैं। झूठी बात है कि मेरे त्रोण अक्षय हैं और गाण्डीव में अपार शक्ति है। यह सब सत्य था जब तक श्रीकृष्ण ने अपनी शक्ति दे रखी थी। अन्यथा यह वही आपका भाई अर्जुन है, वही गाण्डीव-धनुष है, वही बाण हैं, जिनका आतंक त्रिभुवन को कम्पित करता था; किन्तु श्रीकृष्ण नहीं रहे तो उनकी रानियों को द्वारिका से सुरक्षित लाने में अर्जुन असमर्थ हो गया। मार्ग में गोपों ने इसे पराजित किया और पीटकर छोड़ दिया।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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