पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
90. शूरभक्त सुधन्वा
श्रीकृष्णचन्द्र ने दोनों की प्रतिज्ञा सुनकर अर्जुन से कहा- 'विजय ! बहुत बुरी बात है कि मेरे समीप रहते तुम मुझसे पूछे बिना ही प्रतिज्ञा कर बैठे हो। इस राज्य में सबके सब पुरुष एक पत्नी व्रती हैं। हम तुम दोनों इस विषय में बहुत दुर्बल हैं। तुमको सब ओर सोचकर कोई शपथ करनी चाहिए। पहिले भी तुम शपथ करके बहुत बड़ा संकट बुला चुके हो।' अब शपथ तो की जा चुकी थी। अर्जुन ने सका के उपालम्भ का इतना ही उत्तर दिया- 'आप सर्वसमर्थ समीप हो तो मुझे चिन्ता क्या हैं।' शपथ-पूर्ति का भार श्रीकृष्ण पर है, यह सूचित करके अर्जुन ने उन तीन बाणों में से एक धनुष पर चढ़ाया। श्रीकृष्ण ने स्पष्ट स्वर में संकल्प किया- 'मैंने गोवर्धन धारण करके गायों- गोपों की रक्षा का जो पुण्य किया था- वह तुम्हारे इस बाण को प्रदान किया।' बाण धनुष से छूटते ही अग्निे के समान प्रज्वलित हो उठा। सुधन्वा पहिले से धनुष पर बाण चढ़ाये प्रस्तुत था। उसने कहा- 'जय गोविन्द !' और बाण छोड़ दिया। भगवान का पुण्य भी उनके नाम से प्रबल तो नहीं हो सकता। अर्जुन का वह बाण जों सुर-असुर सबके लिए असह्य था, सुधन्वा के बाण से कटकर गिर पड़ा। पृथ्वी काँपने लगी और दिशाओं में आतंक छा गया। स्वयं पार्थ के मस्तक पर पसीने की बड़ी-बड़ी बूँदे झलकने लगीं। अर्जुन को अब लगा कि प्रतिज्ञा करके उन्होंने सचमुच भूल की है; किन्तु सुधन्वा की ललकार सुनाई पड़ी- 'गुडाकेश ! दूसरा बाण भी सन्धान कर देखो। मैं श्रीकृष्ण का तुच्छ सेवक उसे भी काट दूँगा।' अर्जुन ने दूसरा बाण धनुष पर चढ़ाया तो श्रीहरि ने संकल्प किया- 'मैं अपने रामावतार का समस्त पुण्य पार्थ के इस बाण को दुता हूँ।' 'राम !' केवल एक शब्द निकला सुधन्वा के मुख से और उसके बाण ने इस बार भी अर्जुन के बाण को काट फेंका। पृथ्वी और आकाश में सब ओर अग्नि की लपटें उठने लगीं। देवताओं के लोक तक अस्त-व्यस्त हो उठे। सब अलक्ष्य सिद्ध हाहाकार कर उठे। अर्जुन का पूरा शरीर पसीने से भीग गया। वे लड़खड़ा उठे। किसी प्रकार रथ का डण्डा पकड़कर अपने को उन्होंने सम्हाला। 'ओह ! अब केवल एक बाण बचा और सुधन्वा हँसता स्वस्थ्य सम्मुख खड़ा उस शर को भी उठाने को ललकार रहा है।' बहुत व्याकुल होकर बाण उठाते हुए अर्जुन ने श्रीकृष्ण की ओर देखा। उनके नेत्रों मे कातर प्रार्थना प्रत्यक्ष थी। श्रीकृष्ण ने एक बार पलकें बन्द की। उन्होंने बाण के पुच्छ भाग में प्रजापति ब्रह्मा को, मध्य में काल को स्थापित किया और बाण की नोक पर स्वयं बैठे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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