पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
83. भीष्म पर अनुग्रह
श्रीकृष्ण बहुत समीप आ गये। अत्यन्त स्नेहपूर्वक बोले– 'गंगानन्दन ! यश तथा क्षेम का मूल मैं ही हूँ। सत तथा असत सबका मैं ही उपादान हूँ। अतएव मैं तो यश से परिपूर्ण हूँ ही। अब मेरी इच्छा है कि आपका सुयश बढ़े। जब तक यह पृथ्वी रहेगी, सम्पूर्ण लोकों में आपकी अक्षय कीर्ति रहेगी। आपका उपदेश मेरी वाणी श्रुति के समान ही सम्मान्य होगा। उसका श्रवण तथा पालन करने वाले उत्तम गति प्राप्त करेंगे। यहाँ ये महर्षिगण, मुनिमण्डल बैठा है। ये मरने से बचे नरेश लोग हैं। आपके समीप ये धर्म की जिज्ञासा लेकर आये हैं। इन्हें उपदेश कीजिये। आप अवस्था में सबसे बड़े हैं। शास्त्रों का आपने परम्परा-प्राप्त रीति से अध्ययन किया है। सदाचार का पालन किया है। जन्म से अब तक आपका जीवन निर्दोष रहा है। आपने ऋषियों की दीर्घकाल तक सेवा की है। अत: आप उपदेश करने के उचित अधिकारी हैं। चाहे जिसके मुख से सुना धर्म श्रद्धा उत्पन्न न करने के कारण सफल नहीं हुआ करता।' शास्त्र ने और सत्पुरुषों ने भी कहा है कि विद्वान पुरुष से जब कोई विनम्रतापूर्वक पूछे तो उसे उचित अधिकारी को धर्मोपदेश करना चाहिए। अधिकारी व्यक्ति के पूछने पर भी उपदेश न करने वाले को बहुत दोष लगता है। आप बोलने की स्थिति में हैं। जानते हैं और इस समय दूसरा कोई आवश्यक कार्य आपको नहीं है। आपने मौन रहने का नियम भी नहीं ले रखा है। ये ऋषि-मुनि तथा युधिष्ठिर अपने भाइयों के साथ जिज्ञासु बनकर आए हैं। ये उपदेश-श्रवण के अधिकारी हैं। आप में इनका आदर भाव है। ये अपने सब आवश्यक कार्यों को त्यागकर यहाँ आ बैठे हैं। सब संयमी हैं। सदाचारी हैं। इन पर विश्वास किया जा सकता है कि प्राप्त ज्ञान का सदुपयोग ही करेंगे। अत: आप इन्हें अवश्य उपदेश करें।' वक्ता कैसा होना चाहिए और श्रोता में– जिज्ञासु में क्या विशेषता होनी चाहिए, यह भी श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कर दिया। भीष्म के लिए तो इन ज्ञान-घन की अनुमति– इनका आदेश ही पर्याप्त था। उपदेश तो इन्हीं को करना है। भीष्म के मुख ये बोलना चाहते हैं तो इनकी इच्छा पूर्ण हो। इन निखिल नियामक के हाथ का यन्त्र बन जाने में ही तो प्राणी का परम कल्याण है। शरीर प्राण न रहने पर बिखर जाता है। इसे अग्नि की आहुति बना दिया जाता है। कुछ थोड़ी अस्थियाँ बचती हैं- वे फूल सुरसरि को समर्पित कर दिये जाते हैं। जो लोग शरीर को समाधि देकर सुरक्षित रखते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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