पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
8. शोक समाचार
माता के साथ पाण्डव भस्म हो गये थे; किन्तु उनकी उत्तर-क्रिया की चर्चा ही नहीं थी। अभी तक उनकी अस्थियों का चयन करने कोई नहीं गया था। धृतराष्ट्र तथा उनके पुत्र यह कहकर प्रश्न को टाल रहे थे- ‘हम उनकी उत्तर–क्रिया करने के अधिकारी कैसे हो सकते हैं?’ छोटे भाई की पत्नी तथा उसके पुत्रों की उत्तर-क्रिया बड़ा भाई कर सकता है या नहीं, यह बहुत विवाद का प्रश्न नहीं था, किन्तु धृतराष्ट्र राजा थे और अन्धे थे। अपने अन्धेपन के कारण वे असमर्थ थे। उनके पुत्रों में कोई प्रस्तुत नहीं था। आते ही भगवान वासुदेव ने यह चर्चा उठायी और स्वयं यह कर्म सम्पन्न करने को प्रस्तुत हो गये। सात्यकि ने कहा- ‘शिष्य भी पुत्र ही होता है। मैं धनञ्जय का शस्त्र-शिष्य हूँ। अत: उत्तर क्रिया मुझे सम्पन्न करनी चाहिए।‘ ‘तुम कुल्यकरण (वारणावत क्षेत्र) जाकर पाण्डवों का अस्थि चयन कर उत्तर-क्रिया सम्पन्न करके द्वारिका आओ !’ सात्यकि को श्रीद्वारिकाधीश ने आदेश दिया- ‘वहाँ शतधन्वा के और भी समर्थक हो सकते हैं, अत: मुझे अग्रज के साथ तत्काल वहाँ पहुँचना चाहिए।‘ भीष्मादि से विदा लेने का भी अवकाश नहीं था। विदुर को सबसे स्थिति सूचित करने तथा सात्यकि की सहायता करने को कहकर दोनों भाई द्वारिका के लिए चल पड़े। श्रीकृष्णचन्द्र के इस आगमन का प्रभाव पड़ा। किसी के मन में भी संदेह नहीं रहा कि पाण्डव कहीं बचे भी हो सकते हैं। भीष्म तथा संजय ने धृतराष्ट्र को धिक्कारा। उन्हें समझाया कि पाण्डवों उत्तर कृत्य सम्पन्न न करने से लोक में उनकी अपकीर्ति होगी। अत: धृतराष्ट्र और फिर दुर्योधनादि भी उत्साह में आ गये। अस्थि-चयन सात्यकि ने ही किया लेकिन उत्तर-क्रिया पूरे आडम्वर के साथ सम्पन्न हुई। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज