पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
76. ब्रह्मास्त्र से पुन: रक्षण
'भगवन ! मेरा यह अस्त्र अमोघ है। इसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं है।' अश्वत्थामा का स्वर कांप रहा था- 'मैं इसे शान्त करना भी नहीं जानता।' 'तब अपना संकल्प सीमित कर।' व्यास जी ने समझाया – ‘जो सचराचर सम्पूर्ण सृष्टि के सञ्चालक, पालक, प्रलयकर्ता हैं, उन सर्वेश के सम्मुख कोई सृष्टि का अस्त्र अमोघ नहीं हो सकता। पाण्डवों की रक्षा में वे सावधान हैं। उनको मारने का संकल्प नहीं त्यागता तो तेरा अस्त्र तुझे ही भस्म करके अपनी अमोघता सार्थक करने वाला है।' 'मैं इसे उत्तरा के गर्भ पर प्रयुक्त करता हूँ।' अश्वत्थामा ने संकल्प परिवर्तित किया- 'पाण्डव-वंश का एकमात्र बीज है उस गर्भ में। उसके नष्ट होने पर भी पृथ्वी पाण्डवों से रहित हो जायेगी।' 'अच्छा, ऐसा ही कर !' व्यास जी ने अनुमोदन कर दिया। अश्वत्थामा का अस्त्र पाण्डवों को त्यागकर दूसरी ओर एकाकार होकर उन्मुख हो गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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