पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
65. बात का बतंगड़
कर्ण ने कितनी पीड़ा दी थी आज, कैसा अपमान किया था, वह सब युधिष्ठिर कह गये कर्ण मारा गया, इस अनुमान के कारण वे ऐसे प्रसत्र तथा आवेश में आ गये थे कि देर तक बोलते ही गये उन्होंने श्रीकृष्ण अथवा अर्जुन को न तो बोलने का अवसर दिया, न दोनों के मुखपर ही ध्यान दिया कि वहाँ विजय की प्रसत्रता है भी या नहीं। जब बोलकर अन्त में उन्होंने कहा- 'अब यह बतलाओ कि तुमने सूत पुत्र को किस प्रकार मारा ?' तब अर्जुन को बोलने का अवकाश मिला। उन्होंने स्पष्ट कह दिया कर्ण मारा नहीं गया है। हम तो आपको अत्यन्त आहत सुनकर देखने आ गये है। संशप्तकों के साथ संग्राम में मैं लगा था और भाई भीमसेन कर्ण का सामना बडे शौर्य से कर रहे हैं।' जब कोई बहुत बड़ी आशा कर लेता है तो आशा-भंग होने पर उसे बड़ा धक्का लगता है। कर्ण के मारे जाने का अनुमान करके युधिष्ठिर ने समझ लिया था कि अब विजय हो ही चुकी। यह आशा नष्ट हो गयी। कर्ण के द्वारा किया गया अपमान और आघात जैसे फिर ताजा हो गया। अकेले भीमसेन को उस दुर्दान्त के सम्मुख अर्जुन छोड़कर यहाँ आ गये, इससे भी बड़ी झल्लाहट हुई। इन सब कारणों से युधिष्ठिर अपने को सम्हाल नहीं सके। ‘तुम्हारे पौरुष को, पराक्रम को, बार-बार की गयी कर्ण-वध की प्रतिज्ञा को, अस्त्रज्ञान को और गाण्डीव धनुष को धिक्कार है।’ युधिष्ठिर उबल पड़े- ‘तुम अकेले भीमसेन को वहाँ उस कराल काल के सम्मुख छोड़कर चले आये ! तुमने कर्ण को मारे बिना शिविर की ओर मुख ही कैसे किया ? कर्ण तुम से नहीं मारा जाता तो अपना गाण्डीव धनुष और किसी को दे दो।’ ‘गाण्डीव और किसी को दे दो !’ यह सुनते ही अर्जुन क्रोध से काँपने लगे। उनके नेत्र अंगार हो गये। उन्होंने तलवार कोष से खींच ली। श्रीकृष्ण कभी असावधान नहीं होते। भ्रम, प्रमाद, करणापाटव विप्रलिप्सादि अवगुण एवं दुर्बलतायें पुरुष में-जीव में रहती हैं। ये उन परुषोत्तम का स्पर्श नहीं करतीं। उन्होंने अर्जुन से कुछ कड़े स्वर में कहा-‘ परंतप ! यहाँ तो कोई पर पक्ष नहीं है नहीं, फिर तुम यह शस्त्र किस पर उठा रहे हो ?’ अर्जुन ने कहा- ‘केशव ! मेंने प्रतिज्ञा कर रखी है कि जो कोई भी मुझे गाण्डीव दूसरे को दे देने को कहेगा, उसे मैं जीवित नहीं छोडूँगा। जैसे भाई भीमसेन अपने को निमूछिया और पेटू कहना नहीं सह पाते, वैसे ही मैं भी इसे सहन नहीं कर सकता। आप साथ ही हैं, आपने देखा है कि मैंने कहाँ पौरुष प्रकट करने में कोई त्रुटि की है।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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