श्रीनारायणीयम्
द्वयशीतितमदशकम्
उषा की एक सखी थी, जिसका नाम था चित्रलेखा। वह योगिनी और चित्रकर्म में अत्यतं निपुण थी। उसने समस्त तरुण राजकुमारों का चित्र बनाना आरंभ किया। उन बनाये हुए चित्रों में उषा ने अनिरुद्ध को पहचाना, तब उसके मनोनीत पुरुष अनिरुद्ध को वह अपने योगबल से रात्रि के समय आपके महल से उठा लायी।।3।।
उस कन्यापुर में अनिरुद्ध प्रियतमा उषा के साथ सुखपूर्वक रमण करने लगे। जब बाणासुर को किसी प्रकार इसका पता लगा, तब उसने अनिरुद्ध को शर्वबन्ध (नागपाश)- से बाँध लिया। तत्पश्चात् श्रीनारद जी के मुख से अनिरुद्ध के बन्धनरूप वृत्तान्त को श्रवण करके, जिनके क्रोध की सीमा नहीं रह गयी थी, उन यादवों को साथ लेकर आपने बाणासुर की राजधानी शोणितपुर को घेर लिया।।4।। |
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