1.
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1.जन्म-महोत्सव
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1
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2.
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मथुरा से श्री वसुदेव का संदेश लेकर दूत का आगमन और नन्द जी के द्वारा उसका सत्कार
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17
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3.
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षष्ठी देवी का पूजन
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25
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4.
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व्रजेश की मथुरा-यात्रा
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33
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5.
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पूतना-मोक्ष तथा पूतना के अतीत जन्म की कथा
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36
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6.
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कंस के भेजे हुए श्रीधर नामक ब्राह्मण का व्रज में आगमन और व्रजरानी के द्वारा उसका सत्कार
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57
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7.
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काकासुर का पराभव, औत्थानिक (करवट बदलने का) उत्सव, जन्म-नक्षत्र का उत्सव, शकटा
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64
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8.
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श्रीकृष्ण का बलराम जी तथा गोप बालकों के साथ मिलन-महोत्सव, श्री गर्गाचार्य के द्वारा दोनों कुमारों का नामकरण संस्कार
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82
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9.
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शिशु श्रीकृष्ण का अन्न प्राशन-महोत्सव, कुबेर के द्वारा गोकुल में स्वर्ण वृष्ठिसुर-उद्धार
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100
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10.
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व्रज में क्रमशः छहों ऋतुओं का आगमन और श्रीकृष्ण की वर्षगाँठ
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112
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11.
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तृणावर्त-उद्धार
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55
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12.
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श्रीकृष्ण की मनोहर बाललीलाएँ
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138
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13.
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माँ यशोदा का शिशु श्रीकृष्ण के मुख में विश्वब्रह्माण्ड को देखना तथा श्रीराम कथा को सुनकर श्रीकृष्ण में श्रीराम का आवेश
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153
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14.
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श्रीकृष्ण की मृद्भक्षण-लीला तथा माँ यशोदा का पुनः उनके मुख में असंख्य विश्वब्रह्माण्डों को देखना
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163
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15.
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फल विक्रयिणी पर कृपा
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183
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16.
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दुर्वासा का मोह-भंग
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195
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17.
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कण्व ब्राह्मण पर अद्भुत कृपा
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208
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18.
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व्रजेश्वर को श्रीकृष्ण के मुख में अखिल विश्व का दर्शन
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222
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19.
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हाऊ-लीला
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239
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20.
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मणिस्तम्भ-लीला
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258
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21.
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द्वितीय माखन चोरी-लीला
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269
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22.
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माखन चोरी के व्याज से श्रीकृष्ण का सम्पूर्ण व्रज में रस-सरिता बहाना
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282
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23.
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उपालम्भ-लीला
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297
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24.
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श्रीकृष्ण की दूसरी वर्षगाँठ, श्रीकृष्ण के द्वारा मोतियों की खेती
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317
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25.
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ग्वालिनों के उपालम्भ पर माँ यशोदा की चिन्ता और उलाहना देनेवाली पर खीझ
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328
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26.
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स्वयं यशोदा के द्वारा दधिमन्थन तथा श्रीकृष्ण का जननी को रोककर उनका स्तन्य पान करना
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339
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27.
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स्तन्यपान-रत श्रीकृष्ण का गोद से उतारकर माता का चूल्हे पर रखे हुए दूध को संभालना और श्रीकृष्ण का रुष्ट होकर दधिभाण्ड को फोड़ देना तथा नवनीतगार में प्रविष्ट होकर कमोरी रखे हुए नवनीत को निकाल-निकाल कर बंदरों को लुटाना; माता-को देखकर श्रीकृष्ण का भागना और यशोदा का उन्हें पकड़कर बाँधने की चेष्टा करना
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350
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28.
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श्रीकृष्ण की ऊखल बंधन लीला
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364
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29.
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ऊखल से बँधे हुए दामोदर यमलार्जुन बने हुए कुबेर पुत्रों पर कृपापूर्ण दृष्टिपात्र
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381
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30.
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यमलार्जुन के अतीत जन्म की कथा; यमलार्जुन-उद्धार
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390
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31.
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कुबेर-पुत्रों को स्वरूप प्राप्ति तथा उनके द्वारा श्रीकृष्णचन्द्र का स्तवन तथा प्रार्थना; श्रीकृष्ण की उनके प्रति करुणापूर्ण आश्वासन वाणी
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401
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32.
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वृक्षों के टूट जाने पर भी श्रीकृष्ण को अक्षत पाकर माता-पिता का उल्लास
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411
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33.
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क्रीड़ा-निमग्न बलराम-श्रीकृष्ण को माता का यमुना-तट से बुलाकर लाना और स्नानादि के अनन्तर उनका नन्दराय जी की गोद में बैठकर भोजन करना; आँखमिचौनी-लीला
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424
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34.
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उपनन्द जी के प्रस्ताव पर, आये दिन व्रज में होन वाले उपद्रवों के भय से सम्पूर्ण व्रजवासियों की गोकुल छोड़कर यमुना जी के उस पार वृन्दावन जाने की तैयारी
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439
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35.
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वृन्दावन-यात्रा का वर्णन
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451
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36.
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यात्रा के अन्त में यात्रियों का यमुना-तट पर रात्रि-विश्राम तथा रात्रि के शेष होने पर यमुना-पार जाने का उपक्रम
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471
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37.
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व्रजवासियों के यमनुा-पार जाने का वर्णन; श्रीकृष्ण का वृन्दावन की शोभा का निरीक्षण करके प्रफुल्लित होना, शकटों द्वारा आवास-निर्माण
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484
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38.
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रात्रि में समस्त व्रजवासियों के निद्रामग्न हो जाने पर अमर शिल्पी विश्वकर्मा का तीन कोटि शिल्प विशेषज्ञों तथा अगणित यक्ष-समूहों के साथ वृन्दावन में पदार्पण तथा रात्रि शेष होने से पूर्व वहाँ की चिन्मय भूमि पर नवीन व्रजेन्द्र-नगरी, वृषभानुपुर तथा रासस्थली आदि का आविर्भाव; पुरी की अप्रतिम शोभा तथा दिव्यता का वर्णन
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497
|
39.
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नन्दनन्दन की भुवन मोहिनी वंशी ध्वनि का विश्व ब्रह्माण्ड में विस्तार तथा उसके द्वारा वृन्दावन में रस-सरिता का प्रवाहित होना; उसके कारण स्थावर-जंगमों का स्वभाव-वैपरीत्य
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519
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40.
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श्रीनन्दनन्दन का वत्सचारण-महोत्सव तथा अन्यान्य गोपबालकों के साथ बलराम-श्याम का वत्सचारण के लिये पहली बार वन की ओर प्रस्थान तथा वन में सबके साथ छाकें आरोगना
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532
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41.
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दैनिक वत्सचारण-लीला का वर्णन
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550
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42.
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वत्सासुर-उद्धार
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562
|
43.
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वकासुर का उद्धार; वकासुर के पूर्वजन्म का वृत्तान्त
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578
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44.
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वकासुर-संहार की कथा सुनकर यशोदा के मन में चिन्ता; व्रज में सर्वत्र श्रीकृष्ण लीलागान
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599
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45.
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वन में बलराम-श्रीकृष्ण की गोप-बालकों के साथ निलायन-क्रीड़ा-लुकाछिपी का खेल; व्योमासुर का वध
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611
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46.
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वन-भोजन-लीला का उपक्रम, वयस्य गोप-बालकों के द्वारा श्रीकृष्ण का श्रृंगार तथा श्रीकृष्ण के साथ उनकी यथेच्छ क्रीड़ा
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623
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47.
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अघासुर का उद्धार
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641
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48.
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अघासुर के पूर्वजन्म का वृत्तान्त; अघासुर के वध पर देववर्ग के द्वारा श्रीकृष्ण का अभिनन्दन
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665
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49.
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गोप-बालकों के साथ श्रीकृष्ण का वन-भोजन तथा भोजन के साथ-साथ मधुरातिमधुर कौतुक एवं कौशलपूर्ण विनोद
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676
|
50.
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ब्रह्मा जी के द्वारा पहले गोवत्सों का अपहरण और श्रीकृष्ण के उन्हें ढूँढ़ने निकलने पर गोपबालकों का भी अपसारणः श्रीकृष्ण की उन्हें ढूँढ़ निकालने में असमर्थता तथा अन्त में सर्वज्ञताशक्ति द्वारा सब कुछ जान लेना
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692
|
51.
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ब्रह्मा जी की मनोरथ सिद्धि के लिये तथा व्रज की समस्त माताओं तथा वात्सल्यमती गौओं को माँ यशोदा का सा वात्सल्य-रस प्रदान करने के लिये श्रीकृष्ण का असंख्य गोपबालकों एवं गोवत्सों के रूप में उनकी सम्पूर्ण सामग्री के साथ प्रकट होना तथा उन्हीं अपने स्वरूपभूत बालकों एवं बछड़ों के साथ व्रज में प्रवेश
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708
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52.
|
व्रज के सम्पूर्ण गोपबालक एवं गोवत्स बने हुए श्रीकृष्ण का यह खेल प्रायः एक वर्ष तक निर्वाध चलता है, किसी को इस रहस्य का पता नहीं लगता। एक वर्ष में पाँच-छः दिन कम रहने पर एक दिन बलराम जी को वन में गायों का अपने पहले के बछड़ों पर तथा गोपों का अपने बालकों पर असीम और अदम्य स्नेह देखकर आश्चर्य होता है और तब श्रीकृष्ण उनके सामने इस रहस्य का उद्घाटन करते हैं।
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727
|
53.
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ब्रह्मा जी का अपने ही लोक में पराभव और वहाँ से लौटकर श्रीकृष्ण को वन में पूर्ववत उन्हीं गोपबालकों एवं गोवत्सों के साथ, जिन्हें वे चुराकर ले गये थे, खेलते देखकर आश्चर्यचकित होना; फिर उनका सम्पूर्ण गोवत्सों एवं गोपबालकों को दिव्य चतुर्भुज रूप में देखना और मूर्च्छित होकर अपने वाहन हंस की पीठ पर लुढ़क पड़ना
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756
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54.
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चेतना लौटने पर ब्रह्मा जी का अपने वाहन से उतर कर श्रीकृष्ण के पाद-पद्मों पर लुट पड़ना और उनका स्तवन करने लगना
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779
|
55.
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ब्रह्मा जी द्वारा की गयी स्तुति एवं प्रार्थना
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798
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56.
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ब्रह्माजी के द्वारा व्रजवासियों के भाग्य की सराहना
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885
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57.
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ब्रह्मा जी का श्रीकृष्ण से विदा माँग कर सत्य लोग में लौट जाना; पुनः वन-भोजन; योग माया के द्वारा गोपबालकों एवं गोवत्सों का व्रज में प्रत्यावर्तन; उनके सामने उसी दृश्य का पुनः प्रकट होना, जिसे छोड़कर श्रीकृष्ण बछड़ों को ढूँढ़ने निकले थे, तथा उन्हें ऐसा प्रतीत होना मानो श्रीकृष्ण अभी-अभी गये हैं।
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906
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58.
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एक वर्ष के व्यवधान के बाद श्रीकृष्ण का पुनः ब्रह्मा जी के द्वारा अपहृत गोप बालकों एवं गोवत्सों के साथ व्रज में लौटना और बालकों का अपनी माताओं से अघासुर के वध का वृत्तान्त इस रूप में कहना मानो वह घटना उसी दिन घटी हो; व्रजगोपियों तथा व्रज की गायों के स्नेह का अपने बालकों एवं बछड़ों से हटकर पुनः पूर्ववत श्रीकृष्ण में ही केन्द्रित हो जाना
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929
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59.
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श्रीकृष्ण का प्रथम गोचारण-महोत्सव
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947
|
60.
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श्रीकृष्ण के द्वारा बलराम जी के प्रति वृन्दावन की शोभा का वर्णन
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971
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61.
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श्रीकृष्ण का वृन्दावन-विहार
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991
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62.
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वन में गौओं का भटक कर कालिय-ह्नद (कालीदह) के समीप पहुँचना और प्यासी होने के कारण वहाँ का विषैला जल पीकर प्राण शून्य हो गिर पड़ना, गोप-बालकों का भी उसी प्रकार निश्चेष्ट होकर गिर पड़ना; श्रीकृष्ण का वहाँ आकर उन सबको तथा गौओं को करुणा पूर्ण दृष्टि मात्र से पुनर्जीवित कर देना और सबसे गले लगकर एक साथ मिलना
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1023
|
63.
|
श्रीकृष्ण का कालिय नाग पर शासन करने के उद्देश्य से कालिय ह्नद के तट पर अवस्थित कदम्ब के वृक्ष पर चढ़कर वहाँ से कालिय ह्नद में कूद पड़ना
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1039
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64.
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श्रीकृष्ण का कालिय के श्यानागार में प्रवेश और नाग वधुओं से उसे जगाने की प्रेरणा करना; नाग पत्नियों का बाल कृष्ण के लिये भयभीत होना और उन्हें हटाने की चेष्टा करना
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1052
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65.
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श्रीकृष्ण के द्वारा कालिय ह्नद के नीचे तक उद्वेलित होने पर कालिय का क्रुद्ध होकर बाहर निकलना, श्रीकृष्ण को बार-बार कई अंगों में डसना और अन्त में उनके शरीर को सब ओर से वेष्टित कर लेना; यह देखकर तट पर खड़े हुए गोपों और गोप बालकों का मूर्छित होकर गिर पड़ना
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1070
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66.
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अपशकुन देखकर नन्द-यशोदा एवं बलराम जी का तथा अन्य व्रजवासियों का नन्द नन्दन के लिये चिन्तित हो एक साथ दौड़ पड़ना और श्रीकृष्ण के चरण-चिह्नों के सहारे कालीदह पर जा पहुँचना और वहाँ का हृदय विदारक दृश्य देखकर मूर्छित हो गिर पड़ना
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1082
|
67.
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श्रीकृष्ण को कालिय के द्वारा वेष्टित एवं निश्चेष्ट देखकर मैया और बाबा का तथा अन्य सबका भी ह्नद में प्रवेश करने जाना और बलराम जी का उन्हें ऐसा करने से रोकना और समझाना; श्रीकृष्ण का सबको व्याकुल देखकर करुणावश अपने शरीर को बढ़ा लेना और कालिय का उन्हें बाध्य होकर छोड़ देना
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1097
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68.
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श्रीकृष्ण का कालिय को अपने चारों ओर घुमाकर शान्त कर देना और फिर उसके फनों पर कूद कर चढ़ जाना, ललित नृत्य करने लगना; देवताओं द्वारा सुमन-वृष्टि तथा ऋषियों द्वारा स्तव पाठ, गन्धर्वों द्वारा गान एवं चारणों द्वारा वाद्य सेवा; कालिय का अन्त समय में प्रभु को पहचान लेना और उनकी शरण वरण करना
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1117
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69.
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नाग पत्नियों का भी अपने शिशुओं को लेकर श्रीकृष्ण की शरण में उपस्थित होना, स्तुति एवं प्रणाम करना और पति के जीवन की भिक्षा माँगना; श्रीकृष्ण का करुणापूर्वक कालिय के फनों से नीचे उतर आना
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1130
|
70.
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कालिय द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति और श्रीकृष्ण की उसे ह्नद छोड़कर समुद्र में चले जाने की आज्ञा तथा गरुड़ के भय से मुक्ति दान; कालिय एवं उसकी पत्नियों द्वारा श्रीकृष्ण की अर्चना तथा उनसे विदा लेकर रमणक-द्वीप के लिये प्रस्तान
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1156
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71.
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महाकाय सर्प के चंगुल से विजयी होकर निकले हुए श्रीकृष्ण का क्रमशः सखाओं, मैया रोहिणी जी, बाबा, अन्य वात्सल्यवती गोपियों तथा बलराम जी द्वारा आलिंगन; फिर गौओं, वृषभों एवं वत्सों से गले लग कर मिलना; सम्पूर्ण व्रज वासियों का रात्रि में यमुना-तट पर ही विश्राम
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1173
|
72.
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यमुना तट पर श्रीकृष्ण को बीच में रखकर सोते हुए समस्त व्रजवासियों एवं गायों को घेरकर दावाग्नि के रूप में कंस के भेजे हुए दावानल नामक राक्षस की माया का आधी रात के समय प्रकट होना और सबका भगवान नारायण की भावना से श्रीकृष्ण-बलराम को रक्षा के लिये पुकारना तथा उनका जगते ही फूँकमात्र से दावाग्नि को बात की बात में बुझा देना
|
1189
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73.
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धेनुकासुर-वध
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1206
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74.
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बलराम-श्रीकृष्ण का किशोरावस्था में प्रवेश
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1225
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75.
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गोप-बालकों के साथ बलराम-श्रीकृष्ण की विविध मनोहारिणी लीलाएँ
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1239
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76.
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प्रलम्बासुर-उद्धार
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1261
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77.
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कंस के अनुचरों का मुञ्जाटवी में स्थित गोवृन्द को पुनः दावाग्नि से वेष्टित करना और भयभीत गोप-बालकों का श्रीकृष्ण-बलराम को पुकारना; श्रीकृष्ण का बालकों को अपने नेत्र मूँदने को कहकर स्वयं उस प्रचण्ड दावानल को पी जाना
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1280
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78.
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दावानल-पान के अनन्तर श्रीकृष्ण का व्रज में लौटना और व्रजसुन्दरियों का उनका दर्शन करके दिनभर के विरह-ताप को शान्त करना
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1298
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79.
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व्रज में पावस की शोभा का वर्णन
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1309
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