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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
29. ऊखल से बँधे हुए दामोदर यमलार्जुन बने हुए कुबेर पुत्रों पर कृपापूर्ण दृष्टिपात्र
श्रीकृष्णचन्द्र भी मानो जाग-से उठते हैं। नन्दसदन के समीप खड़े गगनचुम्बी यमलार्जुन वृक्षों की ओर उनकी दृष्टि चली जाती है। उसी क्षण बाल्यावेश के अन्तराल से उनकी सर्वज्ञता-शक्ति संकेत करने लगती है- ‘लीलाविहारिन्! दामोदर! देखो नाथ! देवपरिमाण से शतवर्ष पूर्व से ये युग्म अर्जुन-वृक्ष यहाँ आकर तुम्हारी परीक्षा कर रहे हैं। कुबेर पुत्र नलकूबर एवं मणिग्रीव ही वृक्ष बनकर तुम्हारी कृपा की बाट देख रहे हैं! धनमद ने इन्हें अंधा कर दिया था, किंतु तुम्हारे परम भक्त देवर्षि नारद की इन पर कृपा हुई। देवर्षि ने शाप देकर इन्हें वृक्ष-योनि दे दी, अनुग्रह करके तुम्हारे क्रीड़ा-प्रांगण के किनारे निवास दे दिया। तब से बारंबार ग्रीष्म के आतप का, पावस की झड़ी का, शिशिर के हिम का और पवन के प्रचण्ड झंझावात का उपभोग करते हुए ये अपनी सारी मलिनता धा चुके हैं। अब समय पूर्ण हो चुका है, नाथ! अपना पावन स्पर्श दानकर इन्हें कृतार्थ करो, प्रभो! अवसर भी सुन्दर है, जननी गृहकार्य में व्यस्त हैं।’-
सर्वज्ञताशक्ति के उपर्युक्त संकेत पर श्रीकृष्णचन्द्र भी अपनी स्वीकृति दे देते हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीमद्भा. 10।9।22-23)
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