पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
21. अग्र-पूजा
यह विश्व जिनसे व्याप्त है, यज्ञ जिसकी आत्मपूर्ति हैं, अग्नि आहुतियाँ, मन्त्र अर्थात् सम्पूर्ण कर्मयोग, सांख्य तथा योग जिनकी प्राप्ति के साधन हैं, जो अद्वितीय हैं, विश्वरूप हैं, इस जगत की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय के कारण हैं, जिनकी दृष्टि ईक्षण ही माया है जो अनेक प्रकार के कर्म एवं कर्म फल उत्पन्न करती है। धर्मादि श्रेय के समस्त साधन जिनकी कृपा से ही सम्पूर्ण होते हैं, उन महत्तम अच्युत को यह परम पूजा, अर्पित कीजिए। ऐसा करने पर यह सम्पूर्ण प्राणियों की और अपनी भी पूजा होगी। सर्वाभूतात्मा, सबको अपने से अभिन्न देखने वाले, शान्त, परिपूर्ण श्रीकृष्ण की पूजा करें, यदि इसे अनन्त फलदायी बनाना है। 'साधु ! साधु ! सहदेव सत्य कहते हैं।' एक साथ सहस्रों कण्ठों ने कहा- ‘सहदेव वचन श्रेयस्कर हैं। श्रीकृष्णचन्द्र की अग्र पूजन के योग्य हैं।’ ‘महर्षियों ने, मुनियों ने, ब्राह्मणों ने तथा बहुत अधिक राजाओं ने भी कहा। भीष्म पितामह खड़े होकर बोले- ‘सम्राट ! पृथ्वी में यदुवंश शिरोमणि श्रीकृष्ण से श्रेष्ठ दूसरा कोई पूजा का पात्र नहीं है। तुम क्या देखते नहीं हो कि उपस्थित सदस्यों में श्रीकृष्ण अपने तेज, बल एवं पराक्रम से ही देदीप्यमान हो रहे हैं। श्रीकृष्ण हमारी इस सभा के प्राण हैं। जगत के जीवनदाता हैं। उनकी उपस्थिति में श्रेष्ठत्व का निर्णय कैसा ? सहदेव ने ठीक कहा है, तुम अच्युत की अग्र-पूजा करो! जरासन्ध के पुत्र ने प्रस्ताव किया और अमित पराक्रम-कुरुकुल के पितामह उसका अनुमोदन कर चुके। ऋषिगण, विप्रवर्ग समर्थन कर ही रहा था। इस प्रकार यह प्राय: सभी सभासदों की इच्छा का प्रतीक प्रस्ताव बन गया। पाण्डव सम्राट युधिष्ठिर की तो आन्तरिक अभिलाषा ही यह थी। राजसयू यज्ञ का यह पूरा आयोजन ही उन्होंने अपने इन आराध्य के अर्चन के लिए किया था। अत: युधिष्ठिर अपने सिंहासन से उठे। उनके उठते ही वाद्यों का तुमुल निनाद गूंजने लगा। शंख ध्वनि होने लगी। सभी ऋषि-मुनि एवं ब्राह्मण सस्वर पुरुष सूक्त से स्तवन करने लगे। पाण्डव सहदेव ने अर्ध्य पात्र उठाया और विशेष अर्घ्य दिया। श्रीकृष्ण ने विधिपूर्वक अर्घ्य स्वीकार किया। प्रमाधिक्य से विह्वल सम्राट युधिष्ठिर के कर कांपने लगे जब उन्होंने स्वर्णपात्र में श्रीकृष्ण के पद्मारुण पद अपने करों से धोया। उनके नेत्र अश्रुपूर्ण हो गये। साम्राज्ञी द्रौपदी ने अपने अञ्चल से उन चरणों को पोंछा। |
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