श्रीनारायणीयम्
एकत्रिंशत्तमदशकम्
बढ़ते-बढ़ते जब आपका चरण सत्यलोक में जा पहुँचा, तब कमलजन्मा ब्रह्मा ने अपने धाम में स्थित उस चरण के अग्रभाग को कमण्डलु के जल से पखार लिया। उस पादोदकने सारे लोकों को पवित्र कर दिया। उस शुभ अवसर पर आकाशचारी हर्षातिरेक से विभिन्न प्रकार के नृत्य करने लगे और भक्तिशाली जाम्बवान ने मेरी-वादनपूर्वक भुवनं में विचरते हुए आपकी परिक्रमा कर ली।।7।।
तब तक दैत्यों ने संगठित होकर अपने स्वामी की अनुमति के बिना ही आपके अनुचर देवताओं के साथ युद्ध छेड़ दिया, परंतु वे पराजित हो गये। तदनन्तर ‘ये कालस्वरूप भगवान् विष्णु सामने खड़े हैं, जिनके कारण पूर्व में हम लोग पराजित हुए थे; अतः इस समय तुम लोगों को युद्ध से कोई लाभ नहीं होगा।’ बलि के यों कहने पर वे सब के सब पाताल में चले गये।।8।। |
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