विषय सूची
महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
विराट नगर में पाण्डव
भीम ने कहा- "हां महाराज! मैंने पहलवानी में भी बड़ा नाम कमाया है। महाराज युधिष्ठिर मुझे बहुत मानते थे। दुष्ट दुर्योधन ने मेरी कद्र नहीं की। दूसरा कोई राजा मुझे भर पेट खाना न खिला सका इसलिए मैं भटकते-भटकते अब आपकी शरण में आया हूँ।" राजा बोले- "हे बल्लव! तुम चिन्ता न करो मेरे पास इतनी गायें हैं कि तुम्हें दूध, दही और मक्खन की तनिक भी कमी न पड़ेगी। जितना चाहोगे उतना भोजन तुम्हें मिला करेगा और यदि रसोइये के रूप में तुमने अपनी पाककला में मुझे संतुष्ट कर दिया तो मैं तुम्हें और भी सुविधा दे दूंगा।" इस तरह भीम भी नौकरी पा गये। भीम के साथ ही साथ द्रौपदी भी दासी के वेश में राज-महलों में पहुँची। उसने राजा विराट की रानी से कहा- "मेरा नाम सैरन्ध्री है। मेरे पति गन्धर्व हैं। वे आज कल बड़ी मुसीबतों में पड़े हुए हैं, इसलिए अपने पतिदेव की आज्ञा से मैं आपकी शरण में आई हूँ। आप जो भी आज्ञा देंगी मैं उसका पालन करूंगी। मैं पहले श्रीकृष्ण की रानी सत्यभामा की सेवा करती थी। मेरी श्रृंगार कला से प्रसन्न होकर द्रौपदी रानी ने मुझे सत्यभामा से मांग लिया था। मैंने उनकी सेवा में रहकर बड़ा सुख पाया। दुर्भाग्य से जब उनके बुरे दिन आये तो मेरा कहीं ठिकाना न रहा।" रानी सुदेषणा द्रौपदी की बातों में बहुत प्रभावित हुयीं। उन्होंने कहा- "जिस सैरन्ध्री ने रानी सत्यभामा और रानी द्रौपदी का श्रृंगार किया है, उसे मैं अपनी सेवा में सहर्ष नियुक्त करती हूँ।" द्रौपदी बोली- "हे महारानी! मेरी यह प्रार्थना है कि आप मुझे महाराज या किसी भी पुरुष की सेवा में कभी न भेजें। मेरे गन्धर्व पति जो छिपकर मेरी रक्षा करते रहते हैं, यदि मुझे किसी पर पुरुष की सेवा करते देखेंगे तो निश्यय ही उसे मार डालेंगे।" रानी बोली- "मैं तुम्हारी इच्छा का सदा आदर करूंगी।" इस तरह द्रौपदी भी नौकरी पा गई। उसके बाद सहदेव और नकुल भी गायों और घोड़ों के रखवारे बनकर राजा विराट के दरबार में नौकर हो गये। द्रौपदी तथा अपने चारों भाइयों की नौकरी लग जाने के बाद अर्जुन हिजड़ों की तरह जनानी वेशभूषा में महलों में जा पहुँचे। उन्होंने अपना नाम बृहन्नला बताया और कहा- "मैं बहुत अच्छा नाच गाना सिखा सकती हूँ।" राजा विराट की बेटी उत्तरा ने बृहन्नला का नाच देखकर उससे नृत्य कला सीखने की अपनी इच्छा प्रकट की। इस पर राजा विराट ने वृहन्नला की शारीरिक जांच करवाई। उर्वशी की औषधि के प्रभाव से अर्जुन पुरुष तो रह ही नहीं गये थे, इसलिए स्त्रियों के साथ रहने योग्य ठहराये गये और उन्हें नौकरी मिल गई। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज