विषय सूची
महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
भीमसेन और द्रोणाचार्य का पराक्रम
अगले दिन घटोत्कच और भगदत्त नरेश में बड़ा ही घमासान युद्ध हुआ। द्रोणाचार्य भी पाण्डव सेना रूपी घास-फूस को अपने बाणों की अग्नि से जलाते हुए इधर-उधर डोलने लगे। उनके धनुष की टंकारों से पाण्डव पक्ष के सिपाहियों के दिल दहल उठते थे। उस दिन जो भी द्रोणाचार्य के सामने आया वह अधिक देर तक टिक न सका। द्रुपद, भीम, सभी उनसे कतराकर निकल जाते थे और दूसरी ओर कौरव सेना के अधिकाधिक संहार में अपनी शक्ति लगाते थे। कहीं शल्य और नकुल यानी सगे मामा-भान्जे आपस में जूझ रहे थे तो कहीं शकुनि और जयद्रथ अपनी बहादुरी दिखला रहे थे। महाबली अर्जुन भी द्रोणाचार्य से डट कर लोहा ले रहे थे। सारा दिन मार-काट में बीत गया, परन्तु द्रोणाचार्य जी उस दिन भी युधिष्ठिर को पकड़ने की अपनी प्रतिज्ञा पूरी न कर सके। यह देखकर कौरवों ने आपस में तय किया कि किसी तरकीब से अर्जुन को कहीं दूर लड़ने के लिए भेज दिया जाये। जब तक अर्जुन युधिष्ठिर की रक्षा करते रहेंगे तब तक युधिष्ठिर को पकड़ पाना असंभव है। योजना के अनुसार ही संसप्तकों ने एक ऐसी जगह से पाण्डवों की व्यूह-रचना को तोड़ना आरम्भ कर दिया जहाँ कि एकाएक एक किसी वीर सेनानी के पहुँचने की आशा भी नहीं की जा सकती थी। ऐसे घात की खबर सुनकर अर्जुन को उधर जाना ही पड़ा। अर्जुन के दूर जाते ही द्रोणाचार्य युधिष्ठिर को पकड़ने की योजना पूरी करने के लिए पाण्डव सेना में वैसे ही धंसे जैसे सूर्य अंधकार को चीरता हुआ आगे बढ़ता है। उनके युद्ध-कौशल को देखकर बड़े-बड़े वीरों के छक्के छूटने लगे, किन्तु द्रोणाचार्य उस दिन भी अपनी इच्छा पूरी न कर सके। भीम, घटोत्कच, अभिमन्यु और धृष्टद्युम्न आदि महारथी युधिष्ठिर की रक्षा कर रहे थे। उनके आगे किसी की दाल न गल सगी। उल्टे कौरवों के दुर्भाग्य से उस दिन उनका बहुत बड़ा शक्तिशाली साथी भगदत्त अर्जुन से लड़ते हुए मारा गया। उसके बाद अर्जुन ने कौरव सेना का इस बुरी तरह नाश किया कि कौरवों के सिपाही ही नहीं बड़े-बड़े सेनानायक तक यही मानते थे कि जैसे-तैसे सूर्यास्त हो और हम अर्जुन के तीखे बाणों से कम से कम रात भर के लिए बच जायें। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज