गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 85

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

दसवाँ अध्याय

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और किनको आपकी विभूतियाँ मानूँ भगवन्?
अस्त्र-शस्त्र में वज्र और धेनुओं में कामधेनु मैं हूँ। धर्म के अनुकूल सन्तान उत्पत्ति का हेतु कामदेव मैं हूँ और सर्पों में वासुकि मैं हूँ। नागों में शेषनाग, जल-जन्तुओं का अधिपति वरुण, पितरों में अर्यमा और शासन करने वालों में यमराज मैं हूँ। दैत्यों में प्रह्लाद, गाना करने वालों में काल, पशुओं में सिंह और पक्षियों में गरुड़ मैं हूँ। पवित्र करने वालों में वायु, शस्त्रधारियों में राम, जल-जन्तुओं में मगर और बहने वाले स्त्रोतों में गंगाजी मैं हूँ।।28-31।।

और आप किन-किन में हैं?
हे अर्जुन! सम्पूर्ण सर्गों के आदि, मध्य और अन्त में मैं ही हूँ। विद्याओं में अध्यात्मविद्या और परस्पर शास्त्रार्थ करने वालों का तत्त्वनिर्णय के लिये किया जाने वाला वाद मैं हूँ। अक्षरों में अकार और समासों में द्वन्द्व समास मैं हूँ। अक्षयकाल अर्थात् काल का भी महाकाल तथा सब ओर मुखवाला धाता भी मैं हूँ।।32-33।।

और आप किन-किन रूपों में हो?
सबका हरण करने वाली मृत्यु और उत्पन्न होने वालों की उत्पत्ति का हेतु मैं हूँ। स्त्री-जाति में कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा मैं हूँ। गायी जाने वाली श्रुतियों में बृहत्साम और वैदिक छन्दों में गायत्री छन्द मैं हूँ। बारह महीनों में मार्गशीर्ष और छः ऋतुओं में वसन्त मैं हूँ। छल करने वालों में जूआ और तेजस्वियों में तेज मैं हूँ। जीतने वालों की विजय, निश्चय करने वालों का निश्चय और सात्त्विक पुरुषों का सात्त्विक भाव मैं हूँ।।34-36।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

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