गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 8

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

दूसरा अध्याय

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रथ के मध्यभाग में बैठ जाने पर अर्जुन की क्या दशा हुई संजय?
संजय बोले- हे राजन्! जो बड़े उत्साह से युद्ध करने आये थे, पर कायरता के कारण जो विषाद कर रहे हैं और जिनके नेत्रों में इतने आँसू भर आये हैं कि देखना भी मुश्किल हो रहा है, ऐसे अर्जुन से भगवान् मधुसूदन बोले कि हे अर्जुन! इस बेमौके पर तेरे में यह कायरता कहाँ से आ गयी? यह कायरता न तो श्रेष्ठ पुरुषों के द्वारा धारण करने लायक है, न स्वर्ग देनेवाली है और न कीर्ति करने वाली ही है। इसलिये हे पार्थ! तू इस नपुंसकता को अपने में मत आने दे; क्योंकि तेरे जैसे पुरुष में इसका आना उचित नहीं है। अतः हे परंतप! हृदय की इस तुच्छ दुर्बलता को छोड़कर तू युद्ध लिये खड़ा हो जा।।1-3।।

ऐसा सुनकर अर्जुन क्या बोले संजय?
अर्जुन बोले- महाराज! मैं मरने से थोड़े ही डरता हूँ, मैं तो मारने से डरता हूँ, हे अरिसूदन! ये भीष्म और द्रोण तो पूजा करने योग्य हैं। इसलिये हे मधुसूदन! ऐसे पूज्यजनों को तो कटु शब्द भी नहीं कहना चाहिये, फिर उनके साथ मैं बाणों से युद्ध कैसे करूँ?॥4॥

अरे भैया! केवल कर्तव्य-पालन के सामने और भी कुछ देखा जाता है क्या?
महाराज! महानुभाव गुरुजनों को न मारकर मैं इस मनुष्यलोक में भिक्षा के अन्न से जीवन-निर्वाह करना भी श्रेष्ठ समझता हूँ। अगर आपके कहे अनुसार मैं युद्ध भी करूँ तो गुरुजनों को मारकर उनके खून से लथपथ तथा धन की कामना की मुख्यता वाले भोगों को ही तो भोगूँगा! इससे मुझे शान्ति थोड़े ही मिलेगी!।।5।।

फिर तुम क्या करना ठीक समझते हो?
हे भगवन्! हमलोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि युद्ध करना ठीक है या युद्ध न करना ठीक है तथा युद्ध में हम उनको जीतेंगे या वे हमको जीतेंगे। सबसे बड़ी बात तो यह है भगवन्! कि हम जिनको मारकर जीना भी नहीं चाहते, वे ही धृतराष्ट्र के सम्बन्धी हमारे सामने खड़े हैं। फिर इनको हम कैसे मारें?।।6।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

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