गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 37

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

चौथा अध्याय

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अभी आपने जिस कर्मयोग में काम (कामना) के नाश के लिये प्रेरणा की है, उस कर्मयोग की क्या परम्परा है?
भगवान् बोले- इस अविनाशी योग को मैंने सबसे पहले सूर्य से कहा था। फिर सूर्य ने अपने पुत्र मनु से और मनु ने अपने पुत्र इक्ष्वाकु से कहा। इस तरह हे परंतप! परम्परा से चलते आये इस योग को राजर्षियों ने जाना, परन्तु बहुत समय बीत जाने के कारण वह योग इस मनुष्यलोक में लुप्तप्राय हो गया है। तू मेरा भक्त और प्रिय सखा है, इसीलिये वही पुरातन योग आज मैंने तेरे से कहा है, जो कि बड़े उत्तम रहस्य की बात है।।1-3।।

अर्जुन बोले- परन्तु भगवन्! जिस सूर्य को आपने उपदेश दिया था, वह तो बहुत पहले उत्पन्न हुआ है, जबकि आपका जन्म (अवतार) तो अभी हुआ है। अतः मैं यह कैसे जानूँ कि आपने ही सृष्टि के आरम्भ में सूर्य को उपदेश दिया था?।।4।।

भगवान् बोले- हे परंतप अर्जुन! यह बात मेरे इसी जन्म (अवतार) की नहीं है। मेरे और तेरे बहुत-से जन्म हो चुके हैं। उन सबको मैं जानता हूँ अर्थात् किस-किस जन्म में मैंने और तूने क्या-क्या किया, उन सब बातों को मैं जानता हूँ, पर तू अपने जन्मों और कर्मों को भी नहीं जानता।।5।।

जैसे मेरा जन्म हुआ है, ऐसे ही आपका जन्म नहीं हुआ है क्या?
नहीं भैया, मैं अजन्मा, अविनाशी तथा सम्पूर्ण प्राणियों का ईश्वर रहता हुआ ही अपनी प्रकृति को वश में करके अपनी योगमाया से प्रकट होता हूँ।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
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अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
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अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
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अध्याय 18 153

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