गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास
चौथा अध्याय
अभी आपने जिस कर्मयोग में काम (कामना) के नाश के लिये प्रेरणा की है, उस कर्मयोग की क्या परम्परा है? अर्जुन बोले- परन्तु भगवन्! जिस सूर्य को आपने उपदेश दिया था, वह तो बहुत पहले उत्पन्न हुआ है, जबकि आपका जन्म (अवतार) तो अभी हुआ है। अतः मैं यह कैसे जानूँ कि आपने ही सृष्टि के आरम्भ में सूर्य को उपदेश दिया था?।।4।। भगवान् बोले- हे परंतप अर्जुन! यह बात मेरे इसी जन्म (अवतार) की नहीं है। मेरे और तेरे बहुत-से जन्म हो चुके हैं। उन सबको मैं जानता हूँ अर्थात् किस-किस जन्म में मैंने और तूने क्या-क्या किया, उन सब बातों को मैं जानता हूँ, पर तू अपने जन्मों और कर्मों को भी नहीं जानता।।5।। जैसे मेरा जन्म हुआ है, ऐसे ही आपका जन्म नहीं हुआ है क्या? |