गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 115

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

पन्द्रहवाँ अध्याय

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ब्रह्म, अविनाशी अमृत आदि का आधार (आश्रय) आप हैं तो फिर इस संसार का आधार कौन है भगवन्?
भगवान् बोले- इस संसार-रूप वृक्ष का आधार, आश्रय मैं ही हूँ। यह वृक्ष ऊपर की ओर मूलवाला तथा नीचे की ओर शाखावाला है। कल दिन तक भी स्थिर न रहने के कारण इसको ‘अश्वत्थ’ कहते हैं। इसके आदि-अन्त का पता न होने से तथा प्रवाहरूप से नित्य रहने के कारण इसको ‘अव्यय’ कहते हैं। वेदों में आये हुए सकाम अनुष्ठानों का वर्णन इसके पत्ते कहे गये हैं। ऐसे संसार-वृक्ष को जो यथार्थरूप से जानता है, वही वास्तव में वेदों के तत्त्व को जानने वाला है।।1।।

यह संसारवृक्ष और कैसा है भगवन्?
इस संसारवृक्ष की सत्त्व, रज और तम-इन तीनों गुणों के द्वारा बढ़ी हुई शाखाएँ नीचे, मध्य और ऊपर के सभी लोकों में फैली हुई हैं। शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध- ये पाँच विषय इस वृक्ष की शाखाओं की कोंपलें हैं (इन विषयों का चिन्तन करना ही नयी-नयी कोंपलों का निकलना है।) परन्तु इस वृक्ष की शाखाओं का मूल यह मुनष्यलोक ही है; क्योंकि इस मनुष्यलोक में किये हुए कर्मों का फल ही सभी लोकों में भोगा जाता है।।2।।

इस वृक्ष का स्वरूप क्या है?
इस संसारवृक्ष का जैसा सत्य और सुन्दर-सुखदायी रूप लोगों के देखने में आता है, वैसा रूप विचार करने पर मिलता नहीं; इसका न तो आदि है, न अन्त है और न स्थिति ही है।

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अध्याय पृष्ठ संख्या
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