गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास
ग्यारहवाँ अध्याय
भगवान् बोले- तुमने मेरा यह जो चतुर्भुजरूप देखा है, इसके दर्शन अत्यन्त ही दुर्लभ हैं, देवतालोग भी इस रूप को देखने के लिये नित्य लालायित रहते हैं। तुमने मुझे जैसा देखा है, वैसा मैं वेदों से, तप से, दान से और यज्ञ से भी नहीं देखा जा सकता हूँ।।52-53।। तो फिर आप केसे देखे जा सकते हैं? वह अनन्यभक्ति कैसी होती है भगवन्? |