गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 96

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

ग्यारहवाँ अध्याय

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भगवान् बोले- तुमने मेरा यह जो चतुर्भुजरूप देखा है, इसके दर्शन अत्यन्त ही दुर्लभ हैं, देवतालोग भी इस रूप को देखने के लिये नित्य लालायित रहते हैं। तुमने मुझे जैसा देखा है, वैसा मैं वेदों से, तप से, दान से और यज्ञ से भी नहीं देखा जा सकता हूँ।।52-53।।

तो फिर आप केसे देखे जा सकते हैं?
हे शत्रुतापन अर्जुन! इस प्रकार चतुर्भुजरूप वाला मैं अनन्यभक्ति के द्वारा ही देखा जा सकता हूँ। केवल देखा ही नहीं जा सकता, प्रत्युत तत्त्व से जाना भी जा सकता हूँ और प्राप्त भी किया जा सकता हूँ।।54।।

वह अनन्यभक्ति कैसी होती है भगवन्?
हे पाण्डव! सब कर्मों को मेरे लिये करना, मेरे ही परायण होना, मेरा ही भक्त होना, आसक्तिरहित होना और किसी भी प्राणी के साथ वैर न रखना-ऐसी भक्ति से युक्त भक्त मेरे को प्राप्त हो जाता है।।55।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
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