गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 80

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

नवाँ अध्याय

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कोई मनुष्य दुराचारी हो तो क्या वह भी आपका भजन कर सकता है? आपका भक्त हो सकता है?
हाँ जरूर हो सकता है। अगर कोई दुराचारी-से-दुराचारी मनुष्य भी दूसरों का आश्रय छोड़कर मेरा भजन करता है तो उसको साधु ही मानना चाहिये; क्योंकि उसने निश्चय बहुत अच्छा कर लिया है।।30।।

उसको केवल साधु ही मान लें क्या?
नहीं, वह तो तत्काल धर्मात्मा (महान् पवित्र) बन जाता है और सदा रहने वाली शान्ति को प्राप्त हो जाता है। हे कुन्तीनन्दन! तू प्रतिज्ञा कर कि मेरे भक्त का कभी पतन नहीं होता।।31।।

आपकी भक्ति के अधिकारी और भी कोई हो सकते हैं क्या?
हाँ पार्थ, पापयोनि वाले तथा स्त्रियाँ, वैश्य और शूद्र भी मेरा आश्रय लेकर मुझे प्राप्त हो जाते हैं। फिर जो जन्म और कर्म से पवित्र ब्राह्मण और क्षत्रिय हैं, वे मेरे भक्त हो जायँ, इसमें तो कहना ही क्या है।

मैं ऐसा भक्त कैसे बनूँ भगवन्?
इस नाशवान् और सुखरहित शरीर को प्राप्त करके तू मेरा भजन कर।।32-33।।

आपका भजन मैं कैसे करूँ?
तू स्वयं मेरा ही भक्त हो जा, मेरे में ही मनवाला हो जा, मेरा ही पूजन करने वाला हो जा और मेरे को ही नमस्कार कर। इस तरह मेरे साथ अपने-आपको लगाकर मेरे परायण हुआ तू मेरे को ही प्राप्त होगा।।34।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

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