गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 73

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

आठवाँ अध्याय

Prev.png

लौटकर न आना पड़े- इसके लिये क्या करें भगवन्?
हे पार्थ! इन दोनों मार्गों के परिणाम को जानने से कोई भी योगी संसार में मोहित नहीं होता। इसलिये हे अर्जुन! तू सब समय में योगयुक्त हो जा अर्थात् संसार में सदा ही निर्लिप्त, निर्विकार रह।।27।।

योगी होने से क्या होगा भगवन्?
वेद में, यज्ञ में, तप में तथा दान में जो-जो पुण्यफल कहे गये हैं, योगी उन सभी पुण्यफलों का अतिक्रमण करके आदिस्थान परमात्मा को प्राप्त हो जाता है।।28।।

Next.png

संबंधित लेख

गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः