गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास
छठा अध्याय
भगवान् बोले- मैंने कर्मयोग की बहुत-सी बातें बता दीं, अब मैं कर्मयोग का सार बताता हूँ। जो मनुष्य कर्मफल का अर्थात् उत्पत्ति-विनाशशील पदार्थों का आश्रय न लेकर कर्तव्यकर्म करता है, वही संन्यासी है और वही योगी है। केवल अग्नि और क्रिया का त्याग करने वाला संन्यासी और योगी नहीं है। इसलिये हे अर्जुन! लोग जिसको संन्यास (सांख्ययोग) कहते हैं, उसी को तू योग (कर्मयोग) समझ।।1।। संन्यासी और योगी में महिमा किस बात की है। योगी होने में मुख्य हेतु क्या है? उस योगारूढ़ मनुष्य के लक्षण क्या हैं? |